ज्योतिष तत्व सुधार्णव | Jyotish Tatav Sundharnav
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
493
श्रेणी :
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No Information available about श्री कृष्णदास श्रेष्ठिना - Shri Krishnadas Shreshthina
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(५४ ) ज्योतिषतत्तसुधार्णवः ।
अर्थ-निस खाँके पैरोंके नाखून स्लिग्प, उन्नत, ताम्रवर्ण व्चु छाकार और
पुन्दर हों और जिसके पैरोंके ऊपरका भाग उठा हो वह ख्री राजमार््यो ( रानी )
हातीहै ॥ १३ ॥
यस्याः पादतले रेखा सा भवेश्कषितिपाड़ना ।
भवेदसण्डभोगा च या मध्यांगलिसझता ॥ १४॥
अथ-जिस कन्याके चरणतलमें शुभचिद्न हों तो वह रानी होतींहे | और
जिसकी मध्यमाडुडी दूसरी अद्डलीस मिलीहईहो तो वह चिरकालपर्य्यन्त सख
भोगतीहेी ॥ १४ ॥
उन्नतों मांसलोंधगुष्टो वत्तुंछोष्तुलभोगदः ।
वक्री द्वत्वश्व चिपिटः सुखसोभाग्यभञ्षकः ॥ १५॥
अर्थ-निस वराड्रनाका अँगठा मांधछ, वत्तुंडाकार और उठा हो तो वह अत्यन्त
सोभाग्यशालिनी होतीहै, जिसका अजेँगृठा वक्र, हस्त और चपण हो तो उसको
सुख नहीं होताहे ॥ १५ ॥
रे
दीपाड्गुलीमिः कुल्टा क़ृशामिरतिनिद्धना |
जहस्वाभः स्याच् हस्वायभग्राभभम्नवातनी ।
चिंपिदाभभंवेदसा विरलाभदाराद्रण ॥ १६॥
अर्थ-जिस ख्रीकी अब्ुढी द!वाकार हो. वह कुछटा होतीहे ! अब्ुढी क्ृ् होनेसे
निर््धनी होतीहें और जो हस्व हों ता उस खीकी भायु ( उमर ) कम होतीं
अब्रुढ्ी भग्नक समान होनेस वह खी भम्नदशामे अविवाहित रहकर जीवन व्यतीद
करतीहै, चपटी अँगुली होनेसे वह दासी होतीह आर परस्पर निमकी सब अगुड़ी
विरल हो तो वह दारेद्रा हातीहे ॥ १६ ॥
प्ररुपरं पदांगुल्यः समारूठ भवान्त हि
हत्वा बहनपि पतीन्परसप्रेप्पा तदा भवत ॥ १७ ॥
अर्ध-मिस खीकी समस्त अंगुली परस्पर संयुक्त हाँ वह अनेकति नष्ट करके
दसरेकी दासी होतीह ॥ १७ ॥
समपाणष्णा शुभा नारा मृदपाप्णा सुटभगा ।
कुलटान्नतपाष्णा स्याद्यवपाप्णा चे दःखभाझ ॥ 1 |
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