ज्योतिष तत्व सुधार्णव | Jyotish Tatav Sundharnav

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Jyotish Tatav Sundharnav by श्री कृष्णदास श्रेष्ठिना - Shri Krishnadas Shreshthina

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(५४ ) ज्योतिषतत्तसुधार्णवः । अर्थ-निस खाँके पैरोंके नाखून स्लिग्प, उन्नत, ताम्रवर्ण व्चु छाकार और पुन्दर हों और जिसके पैरोंके ऊपरका भाग उठा हो वह ख्री राजमार््यो ( रानी ) हातीहै ॥ १३ ॥ यस्याः पादतले रेखा सा भवेश्कषितिपाड़ना । भवेदसण्डभोगा च या मध्यांगलिसझता ॥ १४॥ अथ-जिस कन्याके चरणतलमें शुभचिद्न हों तो वह रानी होतींहे | और जिसकी मध्यमाडुडी दूसरी अद्डलीस मिलीहईहो तो वह चिरकालपर्य्यन्त सख भोगतीहेी ॥ १४ ॥ उन्नतों मांसलोंधगुष्टो वत्तुंछोष्तुलभोगदः । वक्री द्वत्वश्व चिपिटः सुखसोभाग्यभञ्षकः ॥ १५॥ अर्थ-निस वराड्रनाका अँगठा मांधछ, वत्तुंडाकार और उठा हो तो वह अत्यन्त सोभाग्यशालिनी होतीहै, जिसका अजेँगृठा वक्र, हस्त और चपण हो तो उसको सुख नहीं होताहे ॥ १५ ॥ रे दीपाड्गुलीमिः कुल्टा क़ृशामिरतिनिद्धना | जहस्वाभः स्याच् हस्वायभग्राभभम्नवातनी । चिंपिदाभभंवेदसा विरलाभदाराद्रण ॥ १६॥ अर्थ-जिस ख्रीकी अब्ुढी द!वाकार हो. वह कुछटा होतीहे ! अब्ुढी क्ृ् होनेसे निर््धनी होतीहें और जो हस्व हों ता उस खीकी भायु ( उमर ) कम होतीं अब्रुढ्ी भग्नक समान होनेस वह खी भम्नदशामे अविवाहित रहकर जीवन व्यतीद करतीहै, चपटी अँगुली होनेसे वह दासी होतीह आर परस्पर निमकी सब अगुड़ी विरल हो तो वह दारेद्रा हातीहे ॥ १६ ॥ प्ररुपरं पदांगुल्यः समारूठ भवान्त हि हत्वा बहनपि पतीन्परसप्रेप्पा तदा भवत ॥ १७ ॥ अर्ध-मिस खीकी समस्त अंगुली परस्पर संयुक्त हाँ वह अनेकति नष्ट करके दसरेकी दासी होतीह ॥ १७ ॥ समपाणष्णा शुभा नारा मृदपाप्णा सुटभगा । कुलटान्नतपाष्णा स्याद्यवपाप्णा चे दःखभाझ ॥ 1 |




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