जेल में मेरा जैनाभ्यास | Jail Men Mera Jainabhyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है (६ 1१६ + ) पु त्यो ही 'सनेही' भेष्ठ धर्मों में: ४ ह नअहिंसा! धर्म, , छै।! ५ सीसरा-- हो है “लेसे कर्म कीजिये, वेसे फल भी चसने पडते हैं।” 1. चौथा-- + “कहो परस्पर लडकर किसने कमी सुयश-सुस्र पाया है, फूटन्चैर का क्‍या सीठा फल कभी हाथमे आया है। कौरव-पाण्डव यादबकी भी कथा किसे दै ज्ञात नहीं, घरू लडाईसे बढ फरके थचुरी दूसरी बात नहीं।ए चोचपॉ-- ४ पशुसे बढ कर वे नरशु हैं, जिन्हे दया संचार नहीं, भूमि भार हैं बने जिन्होंने, किया धर्मका प्यार नहीं। जो समर्थ हो असमर्थोकेलिये समर्पित रहते हैं; जनम सफल उनका ही है जो परसुस़को सुस्त कहते हैं ॥? छल , है में ईश्वरकी साही पूर्तक्त इस यातकी प्रतिज्ञा करता हूँ कि निम्न- लिखित नियमॉको में जन्म पर्यन्त पालन करता रहूँगा। क्र --भास का त्याग, चोरी नहीं करनी, जहाँ तक हो सकेगा वहाँ तक भूठ नहीं चोलूँगा। की |




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