जेल में मेरा जैनाभ्यास | Jail Men Mera Jainabhyas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
536
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)है
(६ 1१६ + )
पु त्यो ही 'सनेही' भेष्ठ धर्मों में: ४ ह
नअहिंसा! धर्म, , छै।!
५
सीसरा-- हो है
“लेसे कर्म कीजिये, वेसे फल भी चसने पडते हैं।”
1. चौथा-- +
“कहो परस्पर लडकर किसने कमी सुयश-सुस्र पाया है,
फूटन्चैर का क्या सीठा फल कभी हाथमे आया है।
कौरव-पाण्डव यादबकी भी कथा किसे दै ज्ञात नहीं,
घरू लडाईसे बढ फरके थचुरी दूसरी बात नहीं।ए
चोचपॉ--
४ पशुसे बढ कर वे नरशु हैं, जिन्हे दया संचार नहीं,
भूमि भार हैं बने जिन्होंने, किया धर्मका प्यार नहीं।
जो समर्थ हो असमर्थोकेलिये समर्पित रहते हैं;
जनम सफल उनका ही है जो परसुस़को सुस्त कहते हैं ॥?
छल , है
में ईश्वरकी साही पूर्तक्त इस यातकी प्रतिज्ञा करता हूँ कि निम्न-
लिखित नियमॉको में जन्म पर्यन्त पालन करता रहूँगा। क्र
--भास का त्याग, चोरी नहीं करनी, जहाँ तक हो सकेगा वहाँ
तक भूठ नहीं चोलूँगा। की |
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