हजारी प्रसाद द्विवेदी के साहित्य में लालित्य - योजना | Hajari Prasad Divedi Ke Sahitya Men Lalitya Yojana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(क) लालित्य और रस--आचार्य भरतमुनि ने रस को ममझाते हुए कहा-- रस इति कः पदा्े बास्वाच्यत्वात यर्थात्‌ आस्वाद ही रस है 1 भरतप्रुनि के परवर्ती रसवादी आचार्यों ने भी का्यास्वादन को ही रसास्वादन स्वीकार किया है। भरतमुनि नेरस की परिभाषा देते हुए कहा था कि विभावानुभाव व्यभिचारी संयोगादस- निप्पत्ति अर्थात्‌ विभाव अनुभाव और व्यभिचारी के सयोग से रस की निप्पत्ति होती है। वस्तुत. यह निप्पत्ति संयोग की परिणति है । हम यह कह सकते हैं कि सहुदय को जो आनन्द की अनुभूति होती है वही रस है । रसनिप्पत्ति के समय हम काव्यकृति की रचना की पूर्णता मानते हैं । लालित्य का अनुसंधान इस पूर्णता प्राप्त कृतित्व से आरम्भ होता है और विपरीत दिशा मे तह की ओर अग्रसर होता है। रचना-प्रक्रिया के मूल में स्थित सरकारों का अनुसन्धान ही लालित्य चेतना का अनुसन्धान है । रसास्वादन कृतित्व की पूर्णता पर आरम्भ होता है या अनुभूत होता है लालित्य का आरम्भ इस अनुभूति से होता है । रसानुभूति लालित्य को समझने की एक सरणि है। रस चेतना आवश्यक रूप से मूल्याकन या समीक्षाममी हैं जबकि लालित्य एक संस्कार है जो अभिव्यक्ति मे अरूप छाया रहता है। रसवादी ल्नाचाे भावों में हो सौन्दर्य देखते हैं । इसका प्रमुख कारण यह है कि सौन्दर्य चेतना मानवीय अनुशुति से पूर्णतः सम्बद्ध है । अनुभूति की मात्रा भेद से उसमें अन्तर हो सकता है । रसवादी भआाचार्यों की दृष्टि मे तदाकार परिणत्ति ही सौन्दये है । आचापे शुवल इस वात को स्पष्ट करते हुए कहते है कि जिस वस्तु के प्रत्यक्ष ज्ञान था भावना की तदाकार परिणति जितनी ही अधिक होगी उतनी ही वह वस्तु हमारे लिए सुन्दर कही जायेगी । 5 अनेक भारतीय आचायें रस-शास्त्र मे सौन्दर्य सम्बन्धी दिवेचन की पूर्णता के कारण उसे ऐस्थेटिक्स का पर्याय मानने के पक्षपाती हैं । डॉ० गणपतिचन्द्र गुप्त का तो स्पष्ट मत है कि रस-शास्त्र ऐसा शब्द है जो ऐस्थेटिवस के सभी अर्यों को ध्वनितत करने में समर्थ है। प्रो० ए० सी० शास्त्री ने भी यही स्वीकार किया है । उनके अनुसार यह हमें एकाएक स्पष्ट कर लेना चाहिए कि पूर्व मे हम जिसे रस कहते हैं चही पश्चिम में सौन्दर्य के नाम से पुकारा जाता हैं। 7 नाट्य शास्त्र 6/26 नाट्य शास्त्र डॉ० परेश सूरदास की लालित्य चेतना पूृ० 11 शुवस रामचन्द्र रस मीमांसा पू० 25 रस मीमांसा पू० 24 - रस-सिद्धान्त का पुरनविवेचन पु० 133 . पड घड इट्ट शवीखा उंड घाटवाएँ एफ पिउड2 ६ इ0पॉतें 8 006 9८ फा30८ टाब्या फंड सॉधियं पड ध्याटत वन्य फा धाट धवड1 उड ट1166 9८्पाक फा पद कटनी रस सिद्धान्त का पुनर्मुल्याकन से उद्धृत पृ० 135 ब्लू ३ कु ए मी ६४ ऐसे पा




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