प्रकरणपन्चकम | Prakaranapanchakam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
129
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(२)
ज्ञान फे लिए, काई पेहिक तथा पारलाकिक सुस-सशद्धि के लिए।
पर फोई ज्ञानी महादुभाव लोकशिक्षणाये निष्काम धर्म करते हैं।
भगवार ने श्रीमुख से कहा दै--
चतुविधा भजन्ते मां जनाः सुहृतिने$जुन ।
आतरतो जिजश्ासुर्थार्थी ज्ञानी च भरतपेम ॥
उदार; सर्व एवैसे ज्ञानी स्वाप्सैव से मतम् ।
यद्यपि “न हि कल्याणकत कश्चिद् दुर्गतिं तात गच्छेति/ इस
पचन के अनुसार ये सभी 5 हैं, पर जवानी ते! मगवान् फा भात्मा
ही है। प्रद्मताक्ात्कार सब धर्मों फा फल है, सब धर्मों का सार
है। मानव जाति फी सफलता की परिसीमा वहो है ।
श्रीमद्भागवर्त में लिखा दै--सृष्टि के प्रारम्भ में स्थावर-महु-
मात्मफ़ जगत के भ्रस्यात्य जीवों फो सृष्टि करके भो जब भगवान
ब्रह्म को अपनी कृति से सन््तेप नहीं हुआ तब उन्होंने अक्षसाचा-
त्कारतम मानव क्रो सृष्टि फकी। उससे उन्हें बडा परिताष हुभा,
अपनी छृति में जे प्रभाव-सा खटक रहा था, वह आनन्देद्रेफ में
परियत है। गया ।
सूट्ठा घराणि विविधान्यतयात्मरवत्वा
यूशास् सरीस्टपरप्शून् खगदेशमध्य्याद्
दैस््तैरतशहदयः पुरुष विधाय
अद्ावद्धोकचिपर्य मुदमाप देव ॥
(सरा० ३१ स्क० घ० 39 |]
इसलिए कद्दना होगा कि मानव जाति की सर्वोच्च सभ्यता ब्द्म-
साध्ात्कार पर ही निर्भर है। २० वीं शताब्दी के छुछ ल्लोग इस
कथन फा भले हो उपहास फरं। वे भत्ते हो कहें कि वैज्ञानिक
अभिनव पझाविष्कार ही सानव ज्ञाति की उच्धता के द्योतफ हैं। पर
डउनफी इस उक्ति में कुछ सार नहीं है। यदि पैज्ञानिक आविष्कार
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