शर्वती बाई | Sharvati Bai
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
102
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)डाक्टर चुप रह गया।
इधर राजा साहब ने उसके लिए विशाल हवेली बनवा दी।
हवेली के सामने लंवा-चोड़ा वाय 1 सिर्फ राजसी ठाट-वाट ही
नहीं, राजकन्या भी **
सो, कैसे ?!
सदानंद बाबू ने दुवारा बातों की कड़ी जोड़ दी, 'तो फिर
सुनिए”
हां, वह निहायत अजीवोगरीबव इतिहास था! कम-से-कम
हमारी भांखों के लिए वह इतिहास ही था। नाहरगढ़ के इतिहास
में भी लंबी दास्तान बन गयी। नाहरगढ का राजा भयंकर
बविलासी था । साहव, काम-धाम के वजाय हर वक्त सिर्फ
अय्याशी में डूबा रहता। तभी तो मैं गया था रसगुल्ले बनाने
ओऔर इनाम में ऐँठ लाया हीरे की पांच-पांच अंगूूठियां, टसर की
धोती और पूरे सात सी रुपइये । राजमहल के नोकर, ताबेदार,
दरवारी -मभी रसगुल्ले की वाहवाही में पचमुख हो उठे । ऐसी
मिठाई उन्होने पहले कभी नहीं खायी थी । बड़ी रानी ने अपने
हाथ की पन्ने की अंगूठी इनाम देकर, अपनी तारीफ भेजी।
वैसे उन्हें रसगुल्ला ववाना क्या खाक आता ? भरे साहब, यह
मिठाई वनाना क्या इतना आसान है ? तव तो हर कोई इस
पकवान में विज्ञारर हो उठता | हां, तो, साहव'** होते-होते
मामला यहां तक आ पहुंचा कि वह डावटर राजा साहब का
अत्यंत दुलारा हो उठा। चाहे कोई वीमारी हो या न हो, डावटर
साहव को जव-तब तलव किया जाता । अदरमहल में बढ़िया
शर्वती वाई / १६ हा
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