शर्वती बाई | Sharvati Bai

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : शर्वती बाई  - Sharvati Bai

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about विमल मित्र - Vimal Mitra

Add Infomation AboutVimal Mitra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
डाक्टर चुप रह गया। इधर राजा साहब ने उसके लिए विशाल हवेली बनवा दी। हवेली के सामने लंवा-चोड़ा वाय 1 सिर्फ राजसी ठाट-वाट ही नहीं, राजकन्या भी ** सो, कैसे ?! सदानंद बाबू ने दुवारा बातों की कड़ी जोड़ दी, 'तो फिर सुनिए” हां, वह निहायत अजीवोगरीबव इतिहास था! कम-से-कम हमारी भांखों के लिए वह इतिहास ही था। नाहरगढ़ के इतिहास में भी लंबी दास्तान बन गयी। नाहरगढ का राजा भयंकर बविलासी था । साहव, काम-धाम के वजाय हर वक्‍त सिर्फ अय्याशी में डूबा रहता। तभी तो मैं गया था रसगुल्ले बनाने ओऔर इनाम में ऐँठ लाया हीरे की पांच-पांच अंगूूठियां, टसर की धोती और पूरे सात सी रुपइये । राजमहल के नोकर, ताबेदार, दरवारी -मभी रसगुल्ले की वाहवाही में पचमुख हो उठे । ऐसी मिठाई उन्होने पहले कभी नहीं खायी थी । बड़ी रानी ने अपने हाथ की पन्ने की अंगूठी इनाम देकर, अपनी तारीफ भेजी। वैसे उन्हें रसगुल्ला ववाना क्या खाक आता ? भरे साहब, यह मिठाई वनाना क्‍या इतना आसान है ? तव तो हर कोई इस पकवान में विज्ञारर हो उठता | हां, तो, साहव'** होते-होते मामला यहां तक आ पहुंचा कि वह डावटर राजा साहब का अत्यंत दुलारा हो उठा। चाहे कोई वीमारी हो या न हो, डावटर साहव को जव-तब तलव किया जाता । अदरमहल में बढ़िया शर्वती वाई / १६ हा




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now