विश्वामित्र की खोज | Vishwamitr Ki Khoj
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
106
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[शर |]
ह प्रार्मिर प्रेप कश्दी | घारिमर प्यार “महान प्रेम ! भारीेमय |
शंता के मन में प्राश्मिक प्रेम की दिए दिकीर्स होकर प्रकाप्र-मूंच में
परिणत हो मई |
एसने एशरूप को तुरस्त प्र शिक्ला--“दुम पमुक दित, भ्रमुक याड़ी
हे पा छाप्रो
प्रणन्॒ प्रासे सक्षिका पात --
स्वक्य हिस््ली रगासा हुप्रा | दिस्सी स्टेपत पर सता प्राइुसठा सै
इथकुूप कौ प्रतौशा कए रहो बी | शार-बार बह भपने हैंइ-बेग से स्वरूप
का विश निकास कर देख रही वी ।
बाड़ी भाई ।
भरता से देख। एक भस्यम्त लुब॒भूरत मौजबात दौ गहरे-तीसे चएमे
के धशाोधों में श्फती पोले किप्ती को शोद रही हैं। बह पोरे-बीरे
झ्(बठ दृष्टि से आरो प्रोर देखती इउके उमीप गई पीछे से प्रदयात
बन कर प्रपमे मृदु्त स्वर में पुफारा--/स्वरुप !”
स्वहप धुरन्त छत की घोर घूमा । इसके मुँह से चसचित्र के हीरों
को माँवि टूटते घस्/ निकले 'डि पर 'सठा ) बह उसे देहृता
रष्टा-प्रपप्तक प्रो निरम्तर )
“ब्तिए' परस्तिए!
कुस्ती मे सापान उठाया । दे शोतों साप-साप चते |
“हुलो सवा! तुम कहीं 7” 'पंदल' कहीं से कबाद में हह्टों कौ
तरह भा रुप ।
बहू घबरा गईं। शोसी “दोह बहिन जी तो मरे में हैं । धाप चिट्ठी
सिस्े ठो मेरा भौ समप्दे कह दीजिएपा 1”
स्वहप हैएन परेधान प्लौर बिगड़ ।
“चलिए काचा जी (” शता चली यई | स्पकूप तुश्म्त सद रुसमः
जया । बाट़क बिलेस कै प्रयेण पर हीरो वा सफस भ्रमिनय । सता
चादा कोजिफर मी तिप्यौ' दिप्ता कर शोट साई । बबराई हुए भाकर
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