सूरदास का काव्य - वैभव | Suradas Ka Kavya Vaibhav

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Book Image : सूरदास का काव्य - वैभव  - Suradas Ka Kavya Vaibhav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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काव्य-वमव २७ सम्पदा अपरिमित है। वे द्रज मे रहते थे अत ब्रजभाषा के हब्टों तथा उनके प्रयागा से परिचित होना उनके लिए स्वाभाविक था। पर तु इसका अथ बह नचा। कप वालिया के शब्ठ व्यवहार स अपरिचित थ वसता समग्र देश एक ऐसी बाली से परिचित रहा है जिस हम भाषा विज्ञान कहता म राष्टरभाषा बहा परत हैं| प्राइत काल म॑ भी यद्यपि महाराष्टी प्राढत शौरमसनी प्राइत से भिन्न मानो जाती थो परन्तु उसकी विभिन्नता स्वत्प मात्रा तक ही सीमित थी। शेप चौरमनीवत कह कर आचाय वररुचि न इस भाषागत एक्य की घोषणा कर दी है। भारत व मध्यदटा का भाषा न जाके क्य से भारत का राष्ट्रभापा का काय बरती आ रही है| प्रात स पूव पाछा और पालौस पृद् सस्कृत इसी माननीय काय की वहिवायें रही हैं।अपभ्रटा युग म हे राजनतिक दष्टि स कई सण्डा म विभक्त थे पर सस्दृति दध्टि स पूव की ही भांति एक बने हुए थे और उस सस्कृति वी वाल्किा भ्रध्यदश की ही भाषा थी । ब्रजभाषा अपने रूप म ब्रज से बाहर भा व्याप्त थी। राजस्थान वी मोरा गुजरात के नरसी महता महाराष्ट के नामटव तथा वगाल की ब्रजवूलि भ रचना करने दाठ सभी ब्रजभाषा स परिचित और उसम काथ्य का निर्माण करन बाज हए हैं । प्रात्तीयता बा माह आज रेल ही प्रदल हा पर बह उन डिनों नती था । जायसी के पद्यावत का आज को वचानिक्ता भछ हो काय भाषा मे लिखित प्रमाणित कर पर वह दण की सामा-य राष्द क निकट हो है। विधठपण पद्धति रामचरित मानस का अवधों का वन्य कहतो है पर उमका शितना समालर अवध मे है उसम कटो अधिक ब्रज मे है ओर यदि हम पंजाब रागध्यान आदि को बात करें ता बहा भी वह उतना हो मात्र प्रचलित टिखाई टगा। राष्टभाषा अथवा सास्कूतिब' भाषा एक विदेष भाधार की एकर भ्रचलित «ता है और आग बढतो है पर तु आय प्रकेता मे प्रचठित हाक्लवता को भी अपन साथ लिए रहतो है । अपन रुप म वह सवमा-्य हाता है| ब्रजभाषा का यही सवमा“य रूप था। उसव चाट बर्ह थातों से निबर यर एब में स्विष्ट हा गए थ। मास का याटव या वलिया बना सभी जानत ये साना भाजन व्यजन आहार प्रसाट आति भाट सव परिचित थ। उन उच्चारण में जरुवायु क॑ प्रभाव वा अब ये स्वीकार मरना पर्षेगा | पर वह लिछित सारत्यिव रूप में समबन वी और हो अधिव जायगा चनि्य गो ओर बम १ मूरसागर को छब्ल था दर भापा गो इसी क्राकि स प्रटीष्त है।




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