समाधि शतकम | Samadhi Shatkam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
244
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(६९)
अध्यात्म सुखके समान ओर सुख नहीं है । श्री अध्यात्म
सारमभे यशोव्रिनयजी कहते ह क्विः
कानतावरसुघासादानूना यज्जायतें सुख ॥
किन्दुपार्ये तदंध्यामशात्र खाद सुखोदघः ॥
भावा4:-ज्जीरे अथर झप अमृतके स्वादसे युवान पुरुपोंकों
जो सुख्ध उत्पन्न होता है, वे सुख तो अध्यात्म शास्रके स्वादसे
उत्पन्न दोते हुए छुख सम्रद्रके सामने वे एक ब्रिंदु मात्र है ।
आत्म ज्ञानी मस््मता कोई ओर ही मकार की है । यह मस्नताके
सामने सर्य प्रकारकी क्षणिक मग्नता तुन्छ है । बास्ते ही
कहा है कि आत्म ज्ञान परम सुखकारी है । ऐसा समनकर
सर्व भज्य मीबोंगे उसकी आप्तिके लिये प्रयत्न करना
चाहिये | आता त्ञान संत खुखोंका शिरोमणि है। आत्म
बानद्वारा जो मग्नता होती है, वे मिसने जानी है वे ही जानता
है। वे व।चादारा अब है।
६
चहिसत परथ्रेति त्रिधाष्मा स्व देहिप ॥
2 / 63. की ४-2
उपयातत्र परम मध्यापायाद वहिस्वजत् ॥
भाराग-सर्व शर्रौरोप बदिरास्मा, अंतरात्मा और परमात्मा
एवं तोन प्रकारसे आत्मा रहा है। उसमें अंतरात््मा द्वारा पर-
मास्याकी माप्ति करना; और बहिरात्माका त्याग करना ।
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