रामायण कालीन संस्कृति | Ramayan Kalin Sanskriti

Book Image : रामायण कालीन संस्कृति  - Ramayan Kalin Sanskriti

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ. शांतिकुमार नानूराम व्यास - Dr. Shantikumar Nanuram Vyas

Add Infomation About. Dr. Shantikumar Nanuram Vyas

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
रामायण का.सांस्कृतिक महत्व 9 से प्राचीन भारतीय समाज पर प्रकाश अवदय पड़ता है। महंत्मा गांधी भी रामा- . यंग को नतिक आदर्वों का प्रतिपादन करने के लिए रचित एक काल्पनिक काव्य मानते थे । किंतु रामायण के अध्ययन से यही निष्कर्ष निकलता है कि वाल्मीकि ने राम-राज्य की ऐतिहासिक घटनाओं का काव्यमय वर्णन उपस्थित किया है-- आर्थ-आदर्श के विस्तार का मार्मिक एवं कवित्वपुर्ण इतिहास प्रस्तुत किया है । हां, इस इतिहास को काव्य से तथा तथ्य को कल्पना से पृथक करने में सुक्ष्म विदले- पण की भआवदयकता पड़ेगी । श्री येंदातोरे सुव्बाराव रामायण का दार्शनिक अर्थ लगाते हूँ और, उनके अनु- सार, रामायण के भौगोलिक स्थान वस्तुतः योग-शास्त्र के चक्र हैँ। ई० मूर भी राम-कथा में एक दार्शनिक शास्त्र का प्रतियादन देखते हैं। पर ये कल्पनाएं आदि- कवि की कल्पना से कोसों दूर थीं । इसमें कोई संदेह नहीं कि वाल्मीकि ऐतिहासिक घटनाओं के साथ-साथ नैतिक आदर्शों का भी प्रत्तियादन करना चाहते थे, और इस कारण जहां राम धर्म के प्रतीक वन गए वहां रावण अधमं का । परंतु सारी कथा में रूपक अथवा प्रतीक- मात्र देखने का कोई उचित कारण नहीं ।' राम-कथा का ऐतिहासिक आवार मानते हुए भी श्री एम० वेंकटरत्नम ने अपनी “राम दि ग्रेटेस्ट फेरो आफ ईजिप्ट' नामक पुस्तक में यह सिद्ध करने की चेंण्टा की है कि रामायण वास्तव में मिस्र देश के रमसेस नामक राजा का इतिहास है। रमसेस के वियय में आधुनिकतम खोज के आधार पर जो कुछ ज्ञात हुआ है, उससे स्पष्ट है कि वात्मीकि-रामायण का इस राजा से कोई संबंध नहीं है ।' भारतीय परंपरा और समग्र संस्कृत साहित्य में राम के ऐतिहासिक अस्तित्व को स्वीकार किया गया है । राम-तापनी-उपनिषद पूर्वा) में राम-चरित्र का संक्षिप्त विवरण देते हुए उनके जीवन की घटनाओं को ऐतिहासिक रूप में वर्णित किया गया है। महाभारत के वन-पर्व (अव्याय २७२-२९१) में ऋषि मार्कडेय १. *रास-कथा' पृष्ठ ११६ । २८ वही। ड ३. देखिए वी० बी० कामेइवर ऐयर--'वाल्मीकि रामायण एंड दि बेस्ट क्रिटिक्स', (क्वार्टरली जर्नल आफ दि मिथिक सोसायदी' जित्द १६, शाम रे, पुष्ठ र४०-४)॥ ः द




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now