जातक - कालीन भारतीय संस्कृति | Jatak Kalin Bhartiya Sanskriti

Jatak Kalin Bhartiya Sanskriti by रासबिहारी लाल - Rasabihari Lal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(११ ) प्राप्ति बतछाइ गई है । केन-सम्फ्रदाय ने ब्यपानी सोरगों के दीवन और संस्झति पर क्ठिना प्रमाव डात्य है, यश स्विभुत है | झॉस्ट-म्पा में ब्यत्क-कपाबिफ्यक बास्स्प सोड़ा-गहुत हैं। सपासार्य हिस डसियस के दो प्रन्प इ.. विद्धिप इष्टिगा ठब्य बुद्धि गय-स्टोरीस' लो टस बिपय के सन्वेफग के खिए मोठिक गिने जाते है । रिचिद पक मददोदस ने सन्‌ १९२ हु में 'द सोशक भार्गिनिदेशन इन नार्थ-इप्ट इष्टिया नाम का प्रन्य छिला है जिसमे स्पमाजिक य्यगस्पा के सम्ब थे मे अप्हा सशोभन किया गया हैं । आत्थान बेजीप्रसादली ने सपने 'दु इप्टेड इन पन्सियंप्ट दष्डिया प्रम्ब में राजनेतिक प्रप्ना पर प्रकाश डार्य हैं । भीयुत थी सी सेन का रटडीश इन ज्यठक' प्रन्य कलकत्ता -महाबियाण्य्य ने प्रसिद्ध किया है । भीयुत गोइुर्दास द॑ मास ने सन्‌ १९११६ में 'द सिग्नि फिकैन्स भाव द ज्यतकार' नाम की टेसमाब्म प्रस्थि रे | भीरतिव्यक मेदठा ने फलुद्धिप इष्टिया नाम का भपना प्रम्प सन १९३९ इ में प्रकाशिस किया जो बत्मन्त उफ्य है । मरदुप, सॉची समराषती भचन्ता, एकोरा भौर भाप की करा कृति के बारे मे गठ दस-बीस बपं में नेक प्रम्थ छे इं, जिनमें लाठक-कथाओं के जिया और दिए के सम्बस्थ में प्रभूत चचा की गइ है | रागसमापा में इस बिफ्य पर एक मी प्रम्थ नदीं था | भीजियोगीजी ने भषिरत परिममपूवक पना प्रस्थ छिजिकर यह बुटि दूर कर दी है । दिन्दी-बास्क इसपर उनके सदा शामारी रोगे। मेरी स्थार्यी भफेसा मद हैं कि प्राघीन थासक- प्रत्य और तर प्राचीन बोद्ध सर बेन भारूय का मंथन वियोगीमी शऔर मी करेंगे तथा दिन्दी बाघों को एक से लघिक ठोकोफ्मोगी प्रस्थों का उपायन दंगे--सिशेफ्ता प्राछन गढ्मर्मों के बारे से । बिदाररपमापा-परिपद्‌ ने दिन्दी-बाल्यम का मदन बाय पिया द। पद प्रलयाषना हिसने में भपनी चावम्पफ्रयबरा हुए बिठम्ष के लिए से भीपिगागीजी रुप परिपद्‌ शप्बाढूक छिवपृल्न शद्दायरणी से समापार्थी हूं । पद्ना बिजपाइशमी 1 थि से रे १५: बअम्द *८८ थीभर पाएुदय सादोनी




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