श्रीमद्वाल्मीकि - रामायण युद्धकाण्ड | Shrimadvalmiki - Ramayan Yuddhakand
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
68 MB
कुल पष्ठ :
711
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about चतुर्वेदी द्वारका प्रसाद शर्मा - Chaturvedi Dwaraka Prasad Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( २ )
बढ़ाने के लिए यह भी केहना कि अड्भदादि बातर लक्का
की तहस-तहस कर डालेंगे। अतः सेना को युद्धयात्रा
के लिए शीघ्र आज्ञा दी जाय ।
चौथा सर्गे २०--४७
सुग्रीव के प्रति श्रीरामचन्द्र जी का यह कथन कि;
युद्धयात्रा के लिए 'अभी मुहत शुभ है. । श्रीराम चन्द्र
जी का ससैन्य लक्ढा की.ओर प्रधान | शु प शकुनों का
देख पड़ना । समुद्रवट पर पहुँचता, वहाँ सैन्यशिब्रिर
की स्थापना । समुद्र को देख हरियूथपों का विस्मित
होना ! ५
पाँचवाँ सर्ग ४७-+५२
सागर के उत्तर तट पर सेना का पड़ाव डालना ।
सीता की याद कर, लक्ष्मण जी के सामने श्रीरामचन्द्र
जी का शोकविह॒ल हो विज्ञाप करना । बंदर जो के
घीरज बेवबाने पर श्रीएमचन्द्र जी का सन्त्योपामन
करना ।
छट्वाँ सग ४३--४७
लड्ढा में हनुमान जी हारा किए हुए उपद्रवों को देख,
रावण-की, राक्षसों के प्रति युक्ति ।
सातवाँ सम
रावण के बल पराक्राम की प्रशसा करते हुए राक्षसों
'क्का उसको धीरज बँधाना । इन्द्रजीत का प्रताप वश न ।
आंठवाँ सर्ग ५१७०-६७
रावण के सामने प्रहस्त, हुमुंख, वजद॒ष्ट्र, निकुम्म,
ब॒ुजहनु का अपने अपने बलवीयय की डींगे हॉकना ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...