श्रीमद्वाल्मीकि - रामायण युद्धकाण्ड | Shrimadvalmiki - Ramayan Yuddhakand

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Shrimadvalmiki - Ramayan Yuddhakand  by चतुर्वेदी द्वारिकाप्रसाद शर्मा - chaturvedi dwarikaprasad sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २ ) बढ़ाने के लिए यह भी केहना कि अड्भदादि बातर लक्का की तहस-तहस कर डालेंगे। अतः सेना को युद्धयात्रा के लिए शीघ्र आज्ञा दी जाय । चौथा सर्गे २०--४७ सुग्रीव के प्रति श्रीरामचन्द्र जी का यह कथन कि; युद्धयात्रा के लिए 'अभी मुहत शुभ है. । श्रीराम चन्द्र जी का ससैन्य लक्ढा की.ओर प्रधान | शु प शकुनों का देख पड़ना । समुद्रवट पर पहुँचता, वहाँ सैन्यशिब्रिर की स्थापना । समुद्र को देख हरियूथपों का विस्मित होना ! ५ पाँचवाँ सर्ग ४७-+५२ सागर के उत्तर तट पर सेना का पड़ाव डालना । सीता की याद कर, लक्ष्मण जी के सामने श्रीरामचन्द्र जी का शोकविह॒ल हो विज्ञाप करना । बंदर जो के घीरज बेवबाने पर श्रीएमचन्द्र जी का सन्त्योपामन करना । छट्वाँ सग ४३--४७ लड्ढा में हनुमान जी हारा किए हुए उपद्रवों को देख, रावण-की, राक्षसों के प्रति युक्ति । सातवाँ सम रावण के बल पराक्राम की प्रशसा करते हुए राक्षसों 'क्का उसको धीरज बँधाना । इन्द्रजीत का प्रताप वश न । आंठवाँ सर्ग ५१७०-६७ रावण के सामने प्रहस्त, हुमुंख, वजद॒ष्ट्र, निकुम्म, ब॒ुजहनु का अपने अपने बलवीयय की डींगे हॉकना ।




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