भारतीय राष्ट्रवाद के विकास की हिन्दी - साहित्य में अभिव्यक्ति | Bharatiy Rashtrvad Ke Vikas Ki Hindi Sahity Men Abhivyakti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
373
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श
राजनैतिकसामाणजिक-परिस्थिति तथा राष्ट्रीय चेतना
१८५७-१६२० ई०
वैदिक एवं सस्कत-्याहित्म म श्रार्मावत्त की भौयोलिक एकक्सा की भावतरा
स्पष्ट है, किन्तु उसे राष्ट्रीय भावता या चतना बढ़ना प्रत्युवित होगा । कतिपय
(ददानों के पद में> भएरतवप्पे राम तथा घकवर्तीं राजा दनने वी महत्याकाक्षा राजनतिक
एकता का सूचक है । कौटिल्य के अयशास्त्र पतजसि के महामाप्य १५० ई० पू०)
रामायण, महाभारत बराहमिहिर का वृहत्सहिता तथा कातिदाम के प्रयों म॑ भाश्त
के प्रनश भागा पा वणन मिलता है । ठुबोँक ग्रायमन के पूय देश की मौगालिक
एकता के वजन उसको एडवूव मे बांधने के प्रथत्त तया घामिक एकता को भावना
पाई जाती है. तकिते दे के भिन्न मिन्न भागों में श्राचार विचार रहन-सहन तथा
भाषा के प्रन्तर भी चा। सुक साम्राज्य को स्थापना बे प”चात् भी संपू्ण सारत
आूभि एड एन सूत्र मे पृष्ठठया न दंघ सकी ध्लौर प्रनेक स्वतज राज्य शेप रहे )
इस बाल में समी शवितयाली चासका ने सम्पूण मारतदेश पी एक छत्र | नीचे लाने
के प्रयस्त किये और दे कित्ती घर मे सफर भी हुए लेहित जैम ही कद्रीय शासन
लिविश होता था दंग पुत्रा अनकू मांगा मबठ जाता था ै ग्रत क्षाज राष्ट्रीयता
अ्रधवा राष्ट्रवाद पर” का प्रयोग जिस भ्रय मे किया जा रहा है उस रूप मे राष्ट्रीय
भावना प्राधुनिश शाल # पूव नहीं मिलती 1 यूरोप मे भी यह भावना इसो काल
वी देन है )
अग्रेडी हप्मदबात से धासतिग एकखू्पठा धंग्रेंडो भाषा बे साेदेशिक प्रयोग
तथा मातायात भी सुविधा के फलस्वर्प उत्तर से दर्लिण दया पूथ से पश्चिम तद
देशवासी एशशा हे सूत्र मे भाजद हो विहझूट सम्पक में भाये जिससे राष्ट्रीयका भरी
नवीन खेतना गए उत्म हुमा । संदप्रि भारत भी सौयालिक एरतार पवठा तथा सायरो
बी विधाल सहरो द्वारा सुर्खधत थी झोर राष्ट्र निर्माण में सहयोपा सभी उपकरण
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