गौतम नन्द | Gautam Nand
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
155
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२० ] [ गौतम नन््द
माधविका
उससे एक नई समस्या उत्पन्न हो गई है राजकुमारी ! जबसे'
महाराज ने तथागत का उपदेश सुना है, तबसे वह 'राज्यकार्य की ओर
से कुछ उदासीन-से रहने लगे हैं । उन्होंने महारानी से स्पष्ट कह दिया
है कि अव वह युवराज को राज्य सौंपकर संन्यास ग्रहण करना चाहते
हैं । महाराज का कथन है कि उनके गृहस्थ-जीवन का अब केवल एक
ही कतंव्य और शेष रह गया हैं ।
सुन्दरिका
वह क्या ?
माधविका
तुम्हारा विवाह ।
[सुन्दरिका के मुख पर क्षण भर
लाली की- एक झलक दिखाई
देती है । वह तत्काल प्रकृतिस्थ
हो जाती है। )
सुन्दरिका
व्यर्थ का प्रश्न है यह । आज का युग धीरे-बीरे तथागत गौतम
बुद्ध का युग बनता जा रहा है। इस युग में जब संन्यास ही जीवन की
सबसे अच्छी स्थिति समझी जा रही हो, तव विवाह का क्या मूल्य ?
पहले विवाह करता और फिर भिक्ष बन जाता ! पहले भवने का
निर्माण करना और फिर उसका विनांश करना ! मानो जीवन कोई:
खेल हो ! ऐसे भवन को बनाया ही क्यों जाय, जिसे स्वयं ही आगे'
चलकर मिटाना हो ?
, माधविका -
ये कैसी बातें कर रही हो राजकुमारी ? अपने पिता के हृदय की
कोमल भावत्राश्रों को समको ! महाराज के जीवन. की इससे बड़ी
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