गौतम नन्द | Gautam Nand

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Gautam Nand by जगन्नाथ प्रसाद - Jagannath Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२० ] [ गौतम नन्‍्द माधविका उससे एक नई समस्या उत्पन्न हो गई है राजकुमारी ! जबसे' महाराज ने तथागत का उपदेश सुना है, तबसे वह 'राज्यकार्य की ओर से कुछ उदासीन-से रहने लगे हैं । उन्होंने महारानी से स्पष्ट कह दिया है कि अव वह युवराज को राज्य सौंपकर संन्यास ग्रहण करना चाहते हैं । महाराज का कथन है कि उनके गृहस्थ-जीवन का अब केवल एक ही कतंव्य और शेष रह गया हैं । सुन्दरिका वह क्‍या ? माधविका तुम्हारा विवाह । [सुन्दरिका के मुख पर क्षण भर लाली की- एक झलक दिखाई देती है । वह तत्काल प्रकृतिस्थ हो जाती है। ) सुन्दरिका व्यर्थ का प्रश्न है यह । आज का युग धीरे-बीरे तथागत गौतम बुद्ध का युग बनता जा रहा है। इस युग में जब संन्यास ही जीवन की सबसे अच्छी स्थिति समझी जा रही हो, तव विवाह का क्या मूल्य ? पहले विवाह करता और फिर भिक्ष बन जाता ! पहले भवने का निर्माण करना और फिर उसका विनांश करना ! मानो जीवन कोई: खेल हो ! ऐसे भवन को बनाया ही क्‍यों जाय, जिसे स्वयं ही आगे' चलकर मिटाना हो ? , माधविका - ये कैसी बातें कर रही हो राजकुमारी ? अपने पिता के हृदय की कोमल भावत्राश्रों को समको ! महाराज के जीवन. की इससे बड़ी




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