आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी व्यक्तित्व और कृतित्व | Aacharya Hajari Prasad Dvivedi Vyaktitv Aur Krititv
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
276
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जीवन और थ्यक्तित्व श्३े
निर्माण हाता हैं | हम उनके वात-चीत के सिलसिले में उपयु क्त बातो को अच्छी
हरह पा सकत हैं। समुचित दृष्टिवोण के डरा किसी देश वी सस्दृति को माप
दंड वनाकर दूसरे देश वी संस्कृति को नही परखना चाहिए । बह दष्टिकोण एकागी
दृष्टिकोण बनकर रह जायगा $ उतकी इस विश्ञालदृष्टि ने गिरती हुई मानव
जाति को उठाने कौ प्रेरणा दी | इसों मानवतावादी दष्टिकोण एवं स्वभाव वे
बारण शीघ्र ही पाठक व श्राता से आत्मीय सब घ स्थापित हो जाता है।
उच्च आदर्शों को अपन जीवन म महत्व दत हैं इसीलिए इनको
महात्मा गाधी एवं क्वीरद्र रवोस्द्र से इतनी भक्ति व श्रद्धा है। परिश्रम करने से
कभी नही डरते । इसी परिश्रम व॑ द्वारा उ हौने अपने जीचन को आज इस रूप
मे परिर्वातित कर लिया है | प्रात ४ बजे उठकर अपने आवश्यक कार्यो से निवत्त
हो दो तीन घटा पढना तो मानों इनका अनिवाय नियम सा बन गया है। ये बडो
उदार स्वभाव के हैं । सरस्वती तो उन पर खुश हैं पर लद्षणी भी प्रसत रहती
हैं । किसी को कोई पस्तु दन के पश्चात जने का ध्यान ही नही रहता ॥ हमशा
सादगी को अपनाने बाज़े हैं. ।
सामाजिक सम्पक
+ « आचाय हजारीप्रसाद द्विवेदी जी के स्वभाव म साम्राजिकता और
विनय भाषता इतनी विशिष्ट रूप म पायो जाती है ओर वे स्वत्त एक एस
प्रभावशाली ववता हैं कि साहित्यिक क्षेत्र के अतिरिक्त सावजनिक क्षेत्रा मे भी
उनवी अबाघ गति रही है। कसी भी विपय पर कसी भी समय में
वे उत्तम प्रवार की वक््तता दे सुकते हैं, इसके कारण भिन्न भित्र प्रकार की
संस्थाएं उनको प्राप घुलापा चरती हैं। कुछ लोगों ने उनके इस मनोभाव को
देख कर उन्ह किसी फ्रेद्रीय और परिनिष्ठित विचारधारा का उनतायक ने
मान कर उहू धुरीहीत साहित्य बी सना दी थी इस सबाध मे श्री धमवीर
भारती का ववत'य हमारे सामने हैं। परतु जिस व्यक्ति ने अपन विचारा का
अपनी स्पप्टना के साय इंतन विशद् रूप मे व्यक्त किया है उसे घुरीहीन कहना
आरोपकर्त्ता वी एकाक़ी घारणा का ही परिचायक है । ठ्विवदी जो जब साहित्य
में लोक जीवद के वविया का महत्व प्रदर्शित कर चुके हैं और स्वय एक उदार
मानवतावाटी भावना के व्यक्ति हैं तव आधुनिक जीवय के प्रगतिशील तत्वों का
पल लेना उनवे लिए स्वाभावित्र है । जब जब लेखका वी विचारघारा अथवा
उनको रिसी विशेष समध््या का प्रश्न आया है तव तक द्विवेदी जी के प्रगतिशील
शक्तियों वा हिसाव दिया है । अपने साहित्यिक निद्रधों म डाहोंन प्रेमचद जी
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