काव्य का स्वरूप | Kavya Ka Svaroop
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
212
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कवि प्रौर प्रजापति [ २५
ब1 स्वरूप पूणत नष्ट नहों होता भौर इन संगठनों के छित होने पर वी बह
नष्ट मद्दी होता । भौतिक इकाइयो का रूप अलुष्य भौर भ्रमृत है चाहे उनके
संगठनों में समृद्धि नही होता । इसब विपरीत बोजाणु दे विभाजन से सजीव
इकाइय। का समृद्ध रूप सगठित होता है। इकाइयों का विभाजन ओर सम
बाय जीवन के दो तन हैं। विभाजन में समृद्धि होती है शोर सम्रवाय से
इबाइयों की घनिष्ठता एक कठोर समग्रता को जम दती है 1 इस भ्रपूव स्व
भाव के कारण हो सम्मवत जीवन का समप्र इकाई में एवं कठोर सकोच
उत्प 9 हो गया । मश्वर होने के कारण मानो बहू अपने भत्तित्व के प्रति
श्तमी सजग हो गई है कि इस सजगता ने स्वाथ भौर भ्रहग्वार कारूप ले
लिया है । सयोग मं भा भक्कुण्ण भौर भगृत होते के कारश मावों भौतिक
इकाइयाँ संपांग भौर विभाजन के प्रति उद्यासीन हो। ये भौतिब' इकाइयाँ
प्रपने स्वरुप भौर स्वभाव में प्रवश्य स्पिर रहती हैं ) कि'तु इसमे कोई स्वाथ
महीं होता । ये स्वाथ भौर पराय मे भावों से उदासोन होती हैं। विःतु सजीव
हवाई भपती समग्रता में रूढ होने क कारण स्वाय के प्रति भधिक सजग है 1
सम्भवत् इसी सजगता के कारण सजीव इकाइयों का सस्मिलन नहीं होता ।
दे प्रपने रूप की सीमा में सदा प्रसथ रहती हैं। उतका बाह्य सावोग हो
सकता है। कितु उतका भा-तरिक समवाय नहीं होता । वस्तुत सजीव इृशाई
शी कठोर समग्रता का स्थाय ही उमकी वृद्धि का सूत्र है। भौतिक इकाइयों
मे तत्वों भौर भपने सगठन में प्रात्मसात करके हो सजीव इकाई बढती है
भौर सेरक्षित रहती है । उध्का गति भौर क्रियाए भी भपत रूप के घरक्षा।
के लिय ही होती हैं। प्रत उसे स्वाथमय बह सकते हैं। सवेदनाध्रों मे
भी उसका कदर स््वाथ मे ही होता है, यद्यपि ईर ह्रयों म द्ारीर की भ्रपेसा
प्राय भाव प्रधिक विश्र्तित हुप्रा है। हष्ट प्रौर स्पर्श की संवेदना में
प्राय भाव समात्य भाव बस जाता है। एक सजीव इपाई दूसरी समोव
इवाई के दर्शद भर स्पर्शव पत॒भाना दत होता है। कितु इसम भीये
इकाइयाँ प्रपने स्वरूप में ही रूढ़ रहती हैं गद्यपि समात्माव मे इन
इकाइयों को मुश् मिल सब्ता है ।४ईबेदना मचेतनता ही मानो केश्त दो
कर धहकार धन जाती हैं। यह भहकार स्वाप का बिंदु भौर बीन है।
इसी से ग्रेरित होगर सशीव इकाई शो पहति भौर प्बूतति स्वाय में
संतान रहुतो है।
कितु दूमरी भार उछकी यति पराष प्रौर समात्ममाव की शोर भौ
द्वादी है। गाय, श्रदण भादि मे पराय माव भधिक है । दृष्टि भौर स्पर्त मे
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