श्री वर्द्धमान पुराण | Shri Vardhaman Puran

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Shri Vardhaman Puran by पं पन्नालाल जैन साहित्याचार्य - Pt. Pannalal Jain Sahityachary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[९] जिससे पवित्र जैन धर्मकी प्रभावना हो । कुछ देश्की रुलाहके बाद जैन मन्दिर निर्माण, बिम्ब प्रतिष्ठ ओर गज्रथ ललानेकी निश्चर किया गया । सम्पत्तिकी कमी नहीं थी इसलिये दूसरे ही दिनसे मन्दिर निर्माणका काये शुरू होगया ओर कुछ ही महिनोंमें बनकर तैयार होगया । तोरण ध्यजा आदिसे मन्दिर सजाया गया | जगह जगह निमनन्‍त्रण भेजकर सहर्मी माइयोंकों बुछझाया गया। शुभ मुहनमें गजग्थका फेश हुआ। आये हुए छा्गोका खूब सन्मान किया गया। स्थोत्मवके समय मनुप्योकी अपार भीड ण्वात्रित हुई थी उन सत्रके भोजनपानकी व्यवस्था भी भीपमशाहके द्वारा ही की गई थी। वुन्देलखण्डके कुछ वृद्ध मनुष्येकि मुंहसे हमने सुना है कि उस रथमे इतनी अधिक भीड़ हुईं थी कि ५२ मन मि्चोका चूर्मा परोसनेको नही हुआ था । उस सप्य भेरूसी गांवके मुखिया छोदी ठाकुर थे, उन्होंने चार संघके साथ मिरुकर मीपमणाहजीका टीका किया और सिगई पद दिया। यह घटना सं० १६५१के अगहन मासकी है। उस समय बुन्देलखण्ड शिरोमणि राजा जुन्नारक्ा राज्य था। इस पुण्य कार्येसे सिगई मीप्मशाह- जीका कुछ उत्तरोत्तर वृद्धि ओर सम्पत्तिको प्राप्त होता गया। उनके चोथे पुत्र जो रतनगाह थे उनके जदोले नामक पुत्र हुए | जदोलेके आनंदी- राम ओर आनंदीरामके मनिराम नामक पुत्र हुए। परिम्थितिमें परिवततन होनेसे मनिगमजी भेलमसीको छोड़कर खटोछा आममें रहने ढगे। यह आम बुन्दरुखण्डमें गंज मछाराके पास है। मनिरामजीके चार पुत्र हुए-- १ केशब्गय, २ हरजू. ३ खाड़ेराय ओर परमानन्द। उनमें खाडेरायके




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