मुक्ति दूत | Mukti dut

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शा हृह्य श्र ; विश्तेषर्स करके संसार को एक-एक चीज को बान लूँ। समर में गहीं ता मह सब कैसा केश है ? प्रत्छा सुकेणी धुम बता सरृतो हो इस बादरसों पीछे गया है सुकेप्ती--प्रापको एक भौर बीत सुनाऊे ! पदार्थ --नहीं बीत एैं गहीं छुनूँगा । सुझेधौ--कहिए तो बह तया ताच दिल्लाएं रो उस दिन माजबों से महा गण को दिल्लाया बा । सिद्धार्थ--शृत्व मुझे ततिक मी प्राकृष्ट लईं कर पाता। (सामतै ध्यात देखकर) झहरो देशो सामने बह क्‍या पिरा | (दोतों उबर ही शोड़ छाते हैं गैर देखते हैं कि एक ईस तोर के लाब घायल होकर छत॒पडा रहा है । कुमार पे देखकर बोद में उठा लेते हैं पोर धौरे-पौरे उफ़्के धरीर सै बाण निकालते 1 घाल गिकाशते के बार उसे फ़श्वारे के पास ले खाकर शरतशी धोंच में पानौ ग़श्ते है। भौर इसके प्ररीर ब्र हाथ ररते हैं। तुकेशो अधेत होकर यह सब चती रहती है ।) सुकेश्नो-- (कुमार को तस्मप प्रौर उबस्स देखकर) झुमार इततै उदास ते | यह हो साधारण पज्ची है ! ऐसे हंस भौर पत्रार्सों मिश्त सकत हैँ । पिड्ार्च--तुम नहीं समझती सुकेध्ी न श्राने किसते इसे दाण मार कर ग्राथण्त कर दिया | (हँस की प्रोर देखकर) कितना मूक पक्ती है बह ! (प्राँशों है भाप फ़लछला प्राप्त हैं ।) पुकेप्ौ--पश्ती तो समी मूक होते हैं कुमार ! घिद्धार्ष-्षया ही भच्छा होता कि मैं इसकी पीड़ा को थाम पाता । यदि पक्ष देकर भी इसकी रप्ता कर शर्म तो मुझे बड़ी प्रसनता होपी । (उत्तके पघरौर भर हाय फरेरते हैं। पल्नौ छाफता-सा दिसाई देता है !) सुडेघ्ची--युवराज यह बया कह रहे हैं? पिन सब कहाँ श्राप भौर कहाँ पह साधारख पक्की । [ इसने में देचइतत अब में प्रदेश करता है ] दैबशत्त--हैं हैं दुमार ! यह प्राप क्या कर रहे हैं टसे छोह़ रौणिए । यह




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