श्री अनुयोगद्वारसूत्रम भाग - 1 | Shri Anuyogadwarasutram Bhag - 1

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Shri Anuyogadwarasutram Bhag - 1  by कन्हैयालाल जी महाराज - Kanhaiyalal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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-अनुयोगचन्द्रिका टीका, विषयविवर्णनम्‌ ९ ._ अस्य रब्दाथ स्व्वेवम-अलुयेगस्थ-ब्याख्यानम्य द्वाराणि अनुयागद्वाराणि, ,तखतिपादकक सत्रस-अनुयेगद्वासतत्नम्‌ । अनुयोगस्थं चल्वारि दाराण सन्ति। तथ्था-उपक्रमः, निशक्षेप', अनुगमः, नयश्रेति । तत्न उपक्रम/-उपक्रमणम्‌ उपक्रम॥ व्याख्येयवस्तुना नामनिर्देशः, व्याचिख्यासितशास्रस्थ तेस्तेः प्रतिपादनग्रकारे! समीषीकरणं न्यासदेशानयन निश्चिषयोग्यताऋरणमित्यथः । उपक्रान्त हि उपक्रमा- न्तगंतमेंदेविचारितं-निश्षिप्यते, नत्वलुपक्रान्तम्‌ १। निश्षिप:-निश्षेपणं निश्षिप: -उपक्रमानीतस्थ वशचिर्यासितस्य पा दभावर्यकादे! शाख्रप नाप स्थापनादि भेदन निरूपणप्‌ २। अनुगम।-अनुगमनम्‌-अनुगमः । नामादिना निश्षिप्तस्थ शास्रस्पालुकूर ज्ञामम, अनुकूलाथेकथर्न च ३। नय/-नयति>”अनेकॉशात्मकं वस्तु इस व्याख्यानरूप अनुयोग के द्वारों का ग्रतिपादन करनेवाला जो खरत्र -आगम-है वह अनुयोगद्वार सत्र हे। अनुयोग के चार द्वार हैं। वे इस प्रकार से हैं-[१] उपक्रम (२) निक्षेप, (३) अनुगम और (४) नय। व्याख्येय वस्तु के नाम का कथन करना अर्थात्‌ व्याचिख्यासित-व्याख्या से युक्त करने की इच्छा के विषयभूत बने हुए शात्र को उस २ रूपसे ग्रतिपादन करने की शैली से न्यासदेश में छानां-निक्षेप की येग्यतावाला उसे बनाना इसका नाम उपक्रम है । उपक्रान्त-उपक्रम के अन्तगंत भेदों से विचारित-वस्तु का ही तो निक्षेप होता हे। अनुपक्रान्त का नहीं । पर्रविध आवश्यक आदि शाख्र का कि जो उपक्रमित एवं व्याचिख्यासित है, नाम स्थापना आदि के भेद से निरूषण करना इसका नाम निशक्षेप हें। नामादि के भेद से निरूपित शास्र का अनुकूल ज्ञान होना और अनुकूल उसके अथ का कथन करना इसका नाम अन्ुगम हे । अनेक-धर्मात्मक वस्तु को एकाश के गा व्याण्यान३५ न्मचु॒ुयेणना दारोनु' अतिपाहन अश्नार फेरे शुत़ु-जाणभ-छे, तेज्च! नाभ जबुयेणद्वार सु 9. जदइयेशना ०? थार &२ 9, ते नीये अभाएु छे, (१) 6प5भ, (२) निक्षिप, (3) जब्बभभ सने (४) नय, व्याण्येय वस्तुना नाभजु' इथन 8२वबु' थेटदे हे व्यायिण्यासित व्याप्याथी शुइत अस्वानी धन्छाना विषयश्दष जनेक्ष शास्रने ते ते: इपे अतिपाहन इच्चानी शेक्षी बड़े न्यासद्देशभां क्षावव', तेने निक्षपनी ये्यतावाए' गनाववु' तेच्च/ नाभ 6पद्म छे, 5पद्चान्त 3पड्ेेभना न्मन्तर्गीत सेद्देनी मपेक्षार वियारायेत्वी बस्चुने। ०४ निक्षेप थाथ छिे-जवचुपद्षान्तने। थते। नथी, ०? हपड्मित जखने व्याथिष्यासित छे खेवा छ अड्चारना जावश्यडे जाहि शाखब नाभ स्थापना गजाहि लेडेथी [नश्षणु ४र२व', पेज नाम निक्षिप 9. नाभादहिना सेहथी (निरुषित शाख्रज्' जशैहुण शान हाई जने त्ेना न्मर्थजञ' इ॒इूण इथन 3रवब'




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