अलंकार - परिचय | Alankar - Parichay

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Alankar - Parichay by नरोत्तमदास - Narottam Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है. न चयन रूपक के भेट रूपक के मुख्य तीन भेद होते हँ-- (१) साग (२) निरग (६ ) परपरित ( १ ) साग जब उपमेय पर' उपमान का आरोप किया जाय और साथ ही उपसान के अर्गों का भी उपमेय के शअ्रगों पर आरोप कियए जाय तो उसे साथ रूपफ कहते हें । श्र्थात्‌ जब उपग्रेय को उपभान बनाया याय और उपमेय के धर्मों को उपमान के अगः बनौया जाय बढ़ा साग रूपऊ होता है । यथा (१) मुद! सगल-मय सन्‍्त-समाजू । जो जगजगम? तीरथराजू' ॥ राम भरगति जहेँ. सुरसरि धारा। सरसइ ब्रह्म विचार प्रचारा ॥ विधिनिषेध-मय कलिमल दरणी | करम कथा रवि नदिनि* बरणी ॥ हरिहर-कथा बिराजत बेनी ) सुनत सकल झुद मगल देनी' ॥ बट विस्थास अचलु निज-वर्मा । तीरथ राज समाज सुऊर्मा ॥ यहा सन्‍त समाज को तीथेराज् प्रयाग बनाया गया है और प्रयाग के अन्नों का रूपक भी बाघा गया दै यथा-- तीथेराज प्रयाग खन्‍्त-समाज गगा + रामभक्ति सरसख्ती _ _ ब्रह्म का विचार, | ९ मोद, आनद २ चलन फिरो बाला 5 प्रयाग ४ सरस्दती नदी घध्रममुना « ६ देनेवाली ७ अक्तुयवट ( प्रयाग का ) रे सत्र्भ करन बाले, सज्जन |




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