अलंकार - परिचय | Alankar - Parichay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
90
श्रेणी :
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रूपक के भेट
रूपक के मुख्य तीन भेद होते हँ--
(१) साग
(२) निरग
(६ ) परपरित
( १ ) साग
जब उपमेय पर' उपमान का आरोप किया जाय और साथ
ही उपसान के अर्गों का भी उपमेय के शअ्रगों पर आरोप कियए
जाय तो उसे साथ रूपफ कहते हें । श्र्थात् जब उपग्रेय को
उपभान बनाया याय और उपमेय के धर्मों को उपमान के अगः
बनौया जाय बढ़ा साग रूपऊ होता है ।
यथा
(१) मुद! सगल-मय सन््त-समाजू । जो जगजगम? तीरथराजू' ॥
राम भरगति जहेँ. सुरसरि धारा। सरसइ ब्रह्म विचार प्रचारा ॥
विधिनिषेध-मय कलिमल दरणी | करम कथा रवि नदिनि* बरणी ॥
हरिहर-कथा बिराजत बेनी ) सुनत सकल झुद मगल देनी' ॥
बट विस्थास अचलु निज-वर्मा । तीरथ राज समाज सुऊर्मा ॥
यहा सन्त समाज को तीथेराज् प्रयाग बनाया गया है
और प्रयाग के अन्नों का रूपक भी बाघा गया दै
यथा--
तीथेराज प्रयाग खन््त-समाज
गगा + रामभक्ति
सरसख्ती _ _ ब्रह्म का विचार,
|
९ मोद, आनद २ चलन फिरो बाला 5 प्रयाग ४ सरस्दती नदी घध्रममुना
« ६ देनेवाली ७ अक्तुयवट ( प्रयाग का ) रे सत्र्भ करन बाले, सज्जन |
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