बनारसी बाई | Banarasi Bai
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
202
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बनारसीयाई २३
कहकर जो साहब कभी नहीं हँसते थे वही साहव पूव हँसने लगे ।
शेकहैंड करने के लिए शायद आगे बढ़े ।
मुखर्जीगिन्नी दो कदम पीछे हट गईं। हेंसते-हँसते बोली--अच्छा
चलूँ साहव, नमस्कार--
साहव ने भी दोनों हाव ऊँचे करके ममस्कार किया ।
अगले दिन मिसेज प्रेमचानी को यह बात बताते हुए हँस पडो थी
जोर से मुखर्जीमिन्ती ।
बोली थी--क्या मुश्किल है दीदी, साहब ने आगे हाथ बढ़ा दिया--
घर आकर कपड़े बदलने पड़े फिर से--
--#यों, कपड़े क्यों वदलने पड़े वहन ?
--बदलती नही ? उनकी भी कोई जात है ? मूअर, गाय क्या नहीं
खात्ते ये लोग ।
उस दिन भुधर बाबू भी आश्चर्य चकित हो गये ।
मुखर्जी वायू ने कहा--सत्यनारायण की कथा है, जरूर आइयेगा
बड़े बाबू--
“-सत्यनारायण की कथा ? क्या कह रहे हैं ? आपके घर ?
“हाँ होती तो हमेशा है, पर कभी सबको बुला नहीं पाया ।
“+हमेशा होतो है ? पुरोहित कहाँ से मिलता है ? बड़े बाबू ने
पूछा-+
भ --कंदनी से लाता' हूँ । मुखर्जी बाबू ने जवाब दिया ।
--कटनी से पुरीहित लाते हैं ?
मुखर्जी बाबू बोले--वो तो लाना ही पड़ता है। यहाँ तो कोई मिलता
नहीं ।
भूघर बाबू ने पूछा--काफी खचे पड़ जाता होगा ? कितना हो जाता
१
ह मुखर्जी बाबू ने कहा--पुरोहित को सवा पाँच रुपये दक्षिणा के देता
है
“-भवा पाँच झुपये ?
--धवा पाँच रुपये भी न मिलें तो कटनी से कोई आयेगा ही क्यों ?
दो दिन तो खराब होते ही हैं उसके यहाँ आने में । फिर यहाँ उसका
रहना, खाना, मैवेंध भादि वो है ही--
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