भक्तामर - कथा का हिन्दी - रूपान्तर | Bhaktamar - Katha Ka Hindi - Rupantar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
172
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)केशवद्त्तकी कथा | १७
न जाने क्यों पिंह चिल्ला कर भाग खडा हुआ ओर केशवकी जान
बच गई |
वहेँसे बच कर वह आगे वढा। रास्तेम उप्ते एक ठग मिला। ठगने
उससे कहा-यहाँ एक रसकप है। तुम उसमें उतर कर इस तूँबीको
रससे मर छाओ | इस रसका यह माहात्म्य है कि उससे जो
चाहो से मिलता है। केशव वोछा-भाई ! तुमने कहा सो तो ठीक, पर
कुए्में उतरा केसे जायगा * उत्तर ठगने बडी नम्नतासे कहा-इसतकी
तुम कुठ चिन्ता न करो । मेरे पाप्त एक मजबूत रस्सी है। उससे
बॉध कर में तुम्हें उतार दूँगा ओर जब तुम तूँतरीम रस भरलोंगे तन
खींच टैंगा। वह बेचारा झोम॑म पड कर ठगके झोँसमें आ गया । ठगने
उसकी कमरसे रस्सी वॉध कर उसे कुएमें उतार विया, ओर जब उसने
तूँतीमं रस भर लिया तन धीरे धीरे वह उसे ऊपर खींचने लगा ।
केशव छूगमग किनारे पर आया होगा कि ठगने उससे कहा-ठहरो,
जल्दी मत करो । पहले ठँँनी मुझे ठेठो मिस्तसे रस दुलने न पावे । फिर
तुम निकल आना । केशवने उसका कपठ न समझ रसफी तूँबी उसे
देदी | तेंत्री उत्त ठगके हाथम आई कि वह रस्सी छोडफर भाग
गया। बेचारा केशव घटामसे कुण्म जा गिरा । माम्यसे वह सीधा गिरा,
इमसे उप्तके चोट ते विशेष न जाई, पर मीतरवी गरमीसे उप्तका ठम
घुटने झगा । उसे यहाँ मत्तामरके पाठ करनेगी याद हो उठी | वह
बढी श्रद्धांके साथ मगयानरी आराधना करने छगा | उसे प्रमावस्े
देवीने आकर उसे किनारे छगा टिया। यहाँ मी उप्तडी जान बच गई।
उस्ते वहां टेदीकी झूपासे कुछ रक्त भी प्राप्त हुए) वहँसि वह आगे
ब्दा । रास्तेम उसे साहूफारेंगा एक सत्र मिञ्ल, जो ज्यापारवी
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