सुकुमाल चरित सार | Sukumal - Charit - Saar

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Sukumal - Charit - Saar by उदयलाल काशलीवाल - Udaylal Kashliwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चरित-सार । १३ 1 कार वर जाछी है। अच्छा, और एक वात यह है कि तेरा पुत्र भी उ कभी किसी जैनमुनिको देख पायगा तो वह भी उसी पय सव विपय-भोर्गोको छोड़-छादकर योगी वन जायगा । इसके छ महीनों वाद यश्चोभद्रा सेठानीके पुत्र हुआ । आश्रीके जीवने, जो स्वगमें महर्द्धिक देव हुआ था, बनी स्वर्गकी आयु पूरी हुए वाद यशोभद्राके यद्दाँ जन्म ऽया 1 भाई-वन्धुर्ओने इसके जन्मका बहुत छ उत्सव नाया । इसका नाम सुङ्कमाङ रक्खा गया । उधर सुरेन्द्र निके पवित्र दशन कर और उसे अपने सेट-पदका तिरक 7 आप मुनि हो गया । « जब सुकुमाक वड़ा छुआ तव उसकी माको यदह चिन्ता ई कि कहीं यह मी कभी किसी सुनिको देखकर मुनिन दो एय, इसके छिए यशोभद्राने अच्छे यरानेकी कोई वत्तीस न्दर कन्या्यकि साथ उसका व्याह कर उन सवके रदने- गे एक जुदा ही बड़ा भारी महल बनवा दिया और उसमें व भकारकी विपय-भोर्गोकी एकसे एक उत्तम वस्तु इकट्ठी रयादी, जिससे कि सुङ्कमारका मन सदा विपयोमि फैसा दे । इसके सिवा पुत्रके मोहसे उसने इतना ओर किया ह अपने घरमं जैनञ्ुनिर्योका आना नाना भी न्द करवा ष्या | एक दिन किसी वाहरके सौदागरने आकर राजा पद्योत- को एक वह्ु-मूस्य रत्न-कम्बरु दिखलाया, इस लिए कि ह उसे खरीदके। पर उसकी कीमत वहुत ही अधिक होने- | सजाने उसे नहीं छिया । रत्न-कंवककी वात यशो-




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