संशय तिमिर प्रदीप | Sanshay Timir Pradeep

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Sanshay Timir Pradeep by उदयलाल काशलीवाल - Udaylal Kashliwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संशय तिनिरप्रदोप । १३ ~~~ ----- में नहीं आता कि जेनधमे का पृथक पना केसे जाना जा * सकेगा ? (११) गोमय से छद्धि मानना ठीक नर्दीहे। गर यदह नही समन्ता कि पञ्चेन्द्रिया के पुष मे भी पविश्रता ओर क ¢ अपावित्रता होती हूं ? (१२) मुंडन करवाना ब्राह्मण लोगों का कर्म है उसे जिनमत से अविरुद्ध बतलाना सरासर अन्याय हे ? ( १३) मभादों झुक्क चतुर्दशी के दिन कितने लोग तो जल के कलडा को द्रव्य के द्वारा न्योछावर करते ह और कितने भग- वान के चरणों पर चद हह पुष्पमाला को करते मेरी समझ के अनुसार पहले वालो की कल्पना टीक डे क्योकि पुष्पमाला तो एक तरह निर्माल्य हो जाती है ओर निमील्य के भ्रहण का कितना पाप होता है इसे तुम जानते ही हो । (१७) गदस्था के टये सिद्धान्त पुस्तका का अध्ययन मना है इस में आप की क्या सम्मति है? यदह बात समञ्च मे नही आती। ओर फिर यदि पेखा दी था तो इस विषय के अन्थ ही क्या रचे गये वे किनके काम म आवगे ? ( १५) कन्या, हाथी; घोड़ा ओर सवणे सादि पदार्था के दान देने का जैन ्रथो मे स्थल २ पर निषेध है । परन्तु मैंने कितने अच्छे २ विद्वानों के मुख से यदद कहते खुना है कि इन पदार्थों के दान देने में कोई हानि को बात नहीं हे । यह आश्चय्य केसा !




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