तत्त्वार्थवार्तिकम | Tatwarthwartikam

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Tatwarthwartikam by महेन्द्रकुमार जैन - Mahendrakumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय पृ, स. विषय पु. से. झनन्त कहने से अनन्तानन्त भी परिग्रहीत है. ७४ || अनुपलब्धि से अभाव नही किया जा सकता ११२ असख्यातप्रदेशी लोक में भी अनन्त का ! शतीन्द्रिय पदार्थ सभी वादी मानते हैं ११४ अवगाह ७५ | गति और स्थिति भ्रद्ष्टहेतुक नही है ११६ ११: भण, के प्नन्य प्रदेश महीं ७५ | १८ आकाश का उपकार श्रवगाह है ११८ अणु भ्रप्रदेशी नही किन्तु एकप्रदेशी ७६ जीव' झौर पुदुगल मे मुख्य अ्रवगाह है १२० १२. लोकाकाश में सब द्रव्यों का श्रवगाह ७७ अलोकाकाश मे भी यह लक्षण है १२२ झ्राकाश स्वप्रतिष्ठित है ७७ | खरविषाण की भी बुद्धि और शब्द रूप से व्यवहार से ही सब द्रव्यो मे े सिद्धि १२३ झाधाराधेय भाव है ७८ आवरणाभाव को शभ्राकाश नही कह सकते १२३ लोक का स्वरूप दर शब्द पौद्गलिक है १२४ अलोक सर्वज्ञ के द्वारा ज्ेय होते पर भी प्राकाश प्रकृति का विकार नही १९४ अलोक ही है। 5५ | | ६, शरौर वचन मन श्ौर इवासोच्छवास * खणी प्रौर भ्रधर्म लोकव्यापी हैं कि पुदूगल के उपकार हैं १२५ मे थे कारण इनका अविरोधी धर शरीरादि के निर्देश-क़म का कारण १२५ » पुदूगल का अवगाह एकप्रदेश झादि मे है घर डक ते है | थे | एक प्रदेश मे भी बहुतो का श्रवगाह जैसे कि भाववचन भी पुदुगलनिमित्तक होने से अनेक भ्रदीपप्रकाशो का/भ्रागम प्रामाण्य से भी ८७ पौद्‌गलिक हैं १३० « जीवो का पझ्सख्येय भाग भ्रादि से श्रवगाहू_ ८८ शब्द की पौद्गलिकता ... १३१ असख्यातप्रदेशी लोक मे भी अनन्त मन की पौदगलिकता १३४ जीवो का अवगाह हा मन अनवस्थित है १३५ * भदेशों में सकोच-विस्तार होने से वेशेषिकसम्मत मनोद्रव्य का खण्डन १३६ प्रदीप की तरह भ्रवगाह का अणुमन के आशुसचारित्व की आलोचना. (३८ प्रदीप की तरह अनित्यता नही प्र विज्ञानरूप मन की श्रालोचना १४१ जीव की शरीरपरिमाणता श्र मन प्रकृति का विकार नही श्डर मुक्तजीव किंचित्‌ स्यून अन्तिम प्राशापान की मूर्तिकता १४३ शरजमाण: है ु 3 नम २०. सुख-दु ख जीवन शोर मरण भी « गति भ्रौर स्थिति घर्मं भौर श्रघ्म गल के ही उपकार १४७ द्रव्य का उपकार ६७ के बलि लिए ९८ सुबादि के निर्देशक्ोम की सहेतुकता १४८ स्थिति का लक्षण इक | रेल मं सा रे, उपग्रद और संपकार में सैंद १०२ | र२२- बना परिणाम क्रिया श्रादि काल- झ्राकाश से ही गतिस्थिति मासने पर कस अनसिकंत न बज पालक से आदित्यगतिनिमित्तक वर्तना नही १५६ उपकारक नही हो सकता १०७ आकाशप्रदेशनिमित्तक वर्तना नही १५६ ( १६ )




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