पानीपत की चौथी लड़ाई | Panipat Ki Chothi Ladhayi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
128
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)'रौनी
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(हँसता है) इप सैंनिंद शासन से और उम्मीद भी बया रखी जा सकती
है । (पाज) मैं मौत से नही डरता ॥ जिसने जम लिया है उसकी मृत्यु भी
होगी । मगर मृत्यु स्वाभाविक होनी चाहिए। लेक्नि इस धरती के
तानाशाह शासक जीवन और मरण की मोहर अपनी इच्छा से लगाते हैं ।
मौत की सज्ञा मेरे लिए सजा नहीं एट्सान है मुझ पर इस धुटन में तो
सास लेना भी मुश्किल हो गया था । भगवान से जाकर पूछू गा कि इसान
को इतना अव्लमद कया बनाया वि वो अपने हो आविष्यारों से अपना
ही सव॒नाश वर रहा है । पूछू गा वि आज सभ्यता इतनी उनति क्यो कर
गई कि आज इन्सान दूसरे के हिस्से की रोटी छीनना अपना अधिकार
समझता है । क्यो भाज प्रजातत्र पर तानाशाही की हुकूमत है । क्यो
आज स्याह अधेरे रोशनियों को निगल रहे है। अगर ऐसा हो होता
रहेगा तो मु दूसरे जम की वोई इच्छा नहीं ।
छत
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