पानीपत की चौथी लड़ाई | Panipat Ki Chothi Ladhayi

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Panipat Ki Chothi Ladhayi by सुरेश शर्मा - Suresh Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'रौनी 25 (हँसता है) इप सैंनिंद शासन से और उम्मीद भी बया रखी जा सकती है । (पाज) मैं मौत से नही डरता ॥ जिसने जम लिया है उसकी मृत्यु भी होगी । मगर मृत्यु स्वाभाविक होनी चाहिए। लेक्नि इस धरती के तानाशाह शासक जीवन और मरण की मोहर अपनी इच्छा से लगाते हैं । मौत की सज्ञा मेरे लिए सजा नहीं एट्सान है मुझ पर इस धुटन में तो सास लेना भी मुश्किल हो गया था । भगवान से जाकर पूछू गा कि इसान को इतना अव्लमद कया बनाया वि वो अपने हो आविष्यारों से अपना ही सव॒नाश वर रहा है । पूछू गा वि आज सभ्यता इतनी उनति क्यो कर गई कि आज इन्सान दूसरे के हिस्से की रोटी छीनना अपना अधिकार समझता है । क्यो भाज प्रजातत्र पर तानाशाही की हुकूमत है । क्यो आज स्याह अधेरे रोशनियों को निगल रहे है। अगर ऐसा हो होता रहेगा तो मु दूसरे जम की वोई इच्छा नहीं । छत




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