बीज़री काजल आज रही | Beejuri Kajal Auj Rahi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
126
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६
भेधों के कागज्ञ पर सूरज जब लिखे सुनहरी इयारत
छुप्-टप जाय लपक चिजलियों चमक-चमक उठने का ल ब्रत |
जब पानी नीचे की शाये. उपर को उठ छाय तरुचर
काले घन, काली ज़मीन पर उतर-उतर बरसे गजेन कर ।
उस दिन इन्द्रघनूप से कहना उठ कर घेरा-सा घिर आये
र₹री-_री मख़मली भूमि को रगॉन्भरा मुकुट पहनाये।
जी फ्नो इच्ठाजो-मी भरके हरे भूमि पर गोकुछ गाय
चग्ण-चरण ऊँसे चल पाय, आइ्टेडर, दाय-वाय |
पानी के पवन से नभ से गिरा रहे पर्वत पर पानी
सूती के घर से बरसी हो। ज्या ट्स घर की रामकहानी ।
पन्य-पन्न्ध पानी में इबे, सृष्टि आज गुमराह हो गयी
टठण्डक के हाथो क्विरनों की आगी आज तबाह हो गयी।
नये पूछ फल लग भागे है, नया-नया इतिहास बन रहा
इघर झक़ रहा, उपर तन रहा, यहां हँस उठा, वहां वन रहा!
धीमी मांसों की होड़ों में मन्द्र मलय चलती बहती है
युग मिस्ते-चनते € ऐसे तरु के कानों में कश्ती है।
बादल से कुठ बोला, पन्थिनि एक दहाड़ खा गयी
| ७.
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ट्रट-टूट गिर आया पानी, बिजली गिरी पछाड़ खा गयी !
उचे की फकालिमा गिरी, नीचे पर आयी उजडी होने
ताप जहाँ से बर्मा, आयी वो उसी ताप को धोने।
तर नभ-दिथि चल दिये कि नभ के तरल क़ज्ञ को लोथ देंगे
नभ की विवश काल्मि को ये भूमि सम ही हरिया ढेंगे |
यीज़ुरी काजू थॉनज रहा
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