बीज़री काजल आज रही | Beejuri Kajal Auj Rahi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ भेधों के कागज्ञ पर सूरज जब लिखे सुनहरी इयारत छुप्-टप जाय लपक चिजलियों चमक-चमक उठने का ल ब्रत | जब पानी नीचे की शाये. उपर को उठ छाय तरुचर काले घन, काली ज़मीन पर उतर-उतर बरसे गजेन कर । उस दिन इन्द्रघनूप से कहना उठ कर घेरा-सा घिर आये र₹री-_री मख़मली भूमि को रगॉन्भरा मुकुट पहनाये। जी फ्नो इच्ठाजो-मी भरके हरे भूमि पर गोकुछ गाय चग्ण-चरण ऊँसे चल पाय, आइ्टेडर, दाय-वाय | पानी के पवन से नभ से गिरा रहे पर्वत पर पानी सूती के घर से बरसी हो। ज्या ट्स घर की रामकहानी । पन्य-पन्‍न्ध पानी में इबे, सृष्टि आज गुमराह हो गयी टठण्डक के हाथो क्विरनों की आगी आज तबाह हो गयी। नये पूछ फल लग भागे है, नया-नया इतिहास बन रहा इघर झक़ रहा, उपर तन रहा, यहां हँस उठा, वहां वन रहा! धीमी मांसों की होड़ों में मन्द्र मलय चलती बहती है युग मिस्ते-चनते € ऐसे तरु के कानों में कश्ती है। बादल से कुठ बोला, पन्थिनि एक दहाड़ खा गयी | ७. | ट्रट-टूट गिर आया पानी, बिजली गिरी पछाड़ खा गयी ! उचे की फकालिमा गिरी, नीचे पर आयी उजडी होने ताप जहाँ से बर्मा, आयी वो उसी ताप को धोने। तर नभ-दिथि चल दिये कि नभ के तरल क़ज्ञ को लोथ देंगे नभ की विवश काल्मि को ये भूमि सम ही हरिया ढेंगे | यीज़ुरी काजू थॉनज रहा 1९




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