आँख और कविगण | Aankh Aur Kavigan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
534
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( २७ 2
भीखम करन कृपा अभिमन्यु
दुज्ञोधन सौंम ओ भूरिस्तया के।
अजुन भीम झ्ुधि'्ठर घृछ
बिणट बली सहदेव प्रभाके॥
सो सर बिसथ किए इन नेननि
कहा कहिए निरदरई न दया के ।
मेरे कठाच्छ वर्चे न 'मुनौस' हू
कैसे कदी सर की समता के॥
शम्मु कवि इससे भी आगे बढ गये। उन्होंने इनकी वडाई
में बहुत कुछ कह डाला--
काल कौ फेसे बचे घडी दौकु
से बचे नहि नेन चितोनि के मारे ।
जितने सहारकारी अख-शख्र हैं, उन सब की उपमा नेत्रो
के कटाक्ष से कपरियों ने दी है । 'गोकुल” कवि ने आँखो के श्साथ
तलवार का फैसा रूुपक वाँधा है---
भ्रकुरी कुटिल राजे मूंठ सी बिराजै वर
परक मियान पुज्ञ पानिष सखाल है।
कजल्लछ कलित दोऊ कोर में दुधार घार
डोरे रतनारे जेब जौहर के जाल हे ॥
'गोकुल! बिलोकि निज नाह के सनेह सनी,
स्वच्छ है कटाच्छ काट करत करार है।
कमनीय-कामिनी के स्मनीय नेंन किधी
कामिन के मारिये की काम करवाल है॥
किसी ने तेग, किसी ने छुरी-कठारी और किसी ने वन्दूक
कद्दू कर चितवन को अभिषधातिनी साबित किया है ! जैसे--
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