त्रिणि छेदसूत्राणि | Treeni Chhedasutrani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
612
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)लघु के तोन भेद
१. सघुक, २. लघुतरक झौर ३. यथालघुक ।
लघुस्वफ के तोन भेद
१. सधुस्वक, २. सघुस्वतरक झ्ौर ३. ययालघुस्वक ।
गुरु प्रायश्चित्त महा प्रायश्चित्त होता है उसकी भनुद्घातिक संज्ञा है। इस प्रायश्चित्त के जितने द्नि
निश्चित हूँ भौर जितना तप निर्धारित है वह तप उतने ही दिनो में पूरा होता है। यह तप दर्पिकाप्रतिसेवना वालों
को ही दिया जाता है|
शुरुक व्यवहार : प्रायश्चित तप
१. गुरु प्रायश्चित्त--एक माम पर्यन्त झट्ठम* सैला (त्तीन दिन उपवास)
२. गुरुतर प्रायश्चित्त-- चार मास पर्यन्त दशम *--चोला (चार दित का उपवास)
३. गुरुतर प्रायश्वित--छह मास पर्यन्त द्वादशम २--पचोला (पाँच दिन का उपवास)॥
लघुक व्यवहार/प्रायद्चिचत तप
« लघु प्रायश्वित---तीस दिन पर्यन्त छटु--बैला (दो उपवास)
लघुतर प्रायश्चित्त --पचीस दिन पर्यन्त चउत्यँ --उपवास ।
यथालपु प्रायश्चित--चीस दिन पर्यन्त--आचाम्ल ।९
ना
लघुस्वतरक प्रायश्चित्त--दस' दिन पर्य॑न्त--पूर्वार्ध ५ (दो पोरसी)
२.
३
१. लघुस्वक प्रायश्चित्त--पन्द्रह दिन पर्यन्त एक स्थानक?--(एगलठाणो)
२
३. यथालघुस्वक प्रायरिचत्त--पंच दिन पर्यन्त--निविकृतिक* (विकृतिरहित झाहार) १*
१. एक मास में झाठ भ्रट्टम होते हैं--इनमें चौवीस दिन तपश्चर्या के और झ्ाठ दिन पारणा के । अन्तिम पारणे
का दिन यदि छोड़ दें तो एक मास (इकतोस दिन) गुरु प्रायश्चित्त का होता है ।
२. एक मास में छह दसम होते हुँ--इनमें चौबीस दिन तपश्चर्या के भौर छह दिन पारणे के--इस प्रकार एक
मास (तीस दिन) भरुरु प्रायश्चित्त का होता है ।
३. एक मास में पाँच द्वादशम होते हैं“-इनमें पचीस दिन तपश्चर्या वेः और पाँच दिन पारणे के इस प्रकार एक
मास (तीस दिन) गुरु प्रायश्चित्त का होता है ।
४. तीस दिन में दस छट्ट होते हैं-/-इनमे बीस दिन तपरश्चर्या के शौर दस दिन पारणे के होते हैं !
» पचीस दिन में तेरह उपवास होते हैं--इनमें तेरह दिन तपश्चर्या के और बारह दिन पारणे के । अन्तिम पारणे
का दिन यहाँ नहीं गिना है ।
» बीस दिन में दस भाचाम्ल होते हैं--इनमें दस दिन तपश्चर्या के और दस दिन पारणे के होते हैं ।
पन्द्रह दिन एक स्थातक निरन्तर किये जाते हैं ।
» दस दिन पूर्वार्ध निरन्तर किये जाते हैं 1
» पाँच दिन निविकृतिक झ्राहार निरन्तर किया जाता है ।
१०. वृह० उद्दे० ५ भाष्य याथा ६०३९-६०४४।
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