योग चिकित्सा | Yog Chikitsa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आवश्यक सूचनाएँ ५५ गोली रूप में देर तक रहने से जल्दी विगड़ते नहीं । एक ही रसौषघ अज्लुपान भेद से बहुत से रोगों में काम द देती है। इसलिये भारतीय चिकित्सा में अज्लपान का बहुत बड़ा स्थान है [ बच्चों के लिये विशेष करके यूनानी शर्बत, अर्क भी अच्छे अनुपान हैं, उनका भी योग्य रीति से युक्ति को अमाणित करके उपयोग करना चाहिये | । ६--नाड़ी-श्रास और तापमाप नांडी--हाथ के मणिबन्ध में अंगुष्ठ के मूल में स्थित नाड़ी की परीक्षा को जाती है। इस नाड़ी का सम्बन्ध हृदय से है। हृदय के लिये अन्रिपुत्न ने कहा है कि-- पडज़सक्भविज्ञानमिन्द्रियाण्यथपत्चकम्‌ | आत्मा च सगुणश्चेतश्रिन्त्यं च हृदि संश्रितम्‌ ॥ प्रतिजश्षथ हि भावानामेषां हृदयमिष्यते । गोपानसीनामागारकर्णिकेवारथ चिन्तकेः | तस्योपघातान्मूच्छायं भेदान्मरणमच्छ॒ति । दो हाथ, दो पेर, शिर और अन्‍न्तराधि ( कोष्ठ ) इन छेः अंगों का विज्ञान, पांचों इन्द्रियों के विषय, आत्मा, सुख-दुःखादि गुण; मन, मन का विपय ये सब हृदय में आश्रित हैं। जिस ग्रकार घर में छत की अन्य लकड़ियों को सहारा देने के लिये बीच में एक बड़ा शहतीर होता है, उसी प्रकार इन सब भावों की रक्षा के लिये यह हृदय बनाया है । इस हृदय के उपघात से मूच्छा होती है और भेद से स्त्यु होती है । आज की चिकित्सा में हृदय की परीक्षा का जो महत्त्त हे, वही महत्त्व प्राचीन चिकित्सा में नाड़ी का था। जिस अकार आज हृदय की पराक्षा में स्ट्थल्कोीप साधन है, उसी अकार प्राचीन पद्धति में चिकित्सकका हाथ से नाड़ी को स्पर्श करना ही महत्वपूर्ण था। जिस प्रकार आज चिकित्सक के कान-श्रवणशक्तिध्वनिज्ञान के लिये शिक्षित होने आवश्यक हैं; उसी प्रकार भारतीय चिकित्सा में चिकित्सक का सुपशज्ञान से अभ्यस्त होना जहरी है। ये दोनों ज्ञान ( ध्वनिज्ञान और रुपर्श ज्ञान ) अभ्यास से ही आप्त होते हैं, शाश्र के पढ़ लेने से नहीं होते, जिस अ्रकार कि अच्छे और खोटे र॒त्न की परीक्षा का ज्ञान अभ्यास से ही शआराप्त होता है, केंचल पढ़ने से नहीं मिलता ।




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