योगचिकित्सा | Yog Chikitsa

Yog Chikitsaa by अत्रिदेव विद्यालंकार - Atridev vidyalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ योग-चिकित्सा अल्पमात्रं महादेग॑ बहुदोषहरं सुखम्‌ । लघुपाकं सुखारवादं प्रीणनं व्याघिनाशनम्‌ ॥। अधिकाराबिपन्नं च नातिग्लानिकर च तत | गन्घवणंरसो पेत॑ विद्यान्‍्मात्रावदौषधघम्‌ ॥। ३--योगों से चिकित्सा करना समा का नाम सुन कर यदमारिलोौह देदना श्वास सुनते ही श्वास कुठार देदेना ज्वर सुनते ही ज्वरसंहार या ग्रत्युंजय देंदेना समुचित नहीं इसीसे कहा है- योगैरेव चिकित्सन्‌ हि देशाद्यज्ञो5पराध्यति । वयो बलशरीरादि भेदा।हि बहवों मता ।। चरक देश झादि का न समफकन वाला चिकित्सक केवल योगा से ही चिकित्सा करने पर भूल कर बेठता ? क्योंकि बय-बल-शरीर आदि के बहुत से भेद हैं उन सब का विचार करना जरुरी हे । इस विषय सें द्आयुवेद से।पान के कर्त्ता श्री राम चन्द्र विनाद जी ने जो ठिखा ह€ वह ध्यान देने योग्य ४ यथा-- शाख्र में फलश्रुति-गयुण दणन काल में आयः सब र.गा का नाम देखने में दआ जाता दे । दूसरी श्रे र सदा काम में आने वाली ओर अतिशय उपयोगी झो।षधि के लिये कुछ भी फलश्रति नहीं । उदाहरण ये लिये श्ंगाराथ कासरोग की एक सामान्य औषध दे परन्तु इसके विपय में लिखा हे कि-- बल्यो वृप्यश्र भी ग्यस्तरुणतरकरः सवबरोग श्रशस्त | ख़ड्नारा रण कामी युवतिजनशतभोगयोगादृठुष्ट ॥। यह ओषधघ बलकारक शुक्रजनक भोगये।ग्य तरुण करने वाली समस्त रोगों में प्रशस्त कामुक व्यक्ति इसके सेवन ने. पीछु एक रो ब्रियो में रमण कर सकता है । परन्तु व्यवहार में इसमे इतन ण नहीं मिलते । इसके विपरीत चन्दनादि लेट नाना प्रकार के विषम ज्वरो मे पित्ताश्रित ज्वर में मेहज्वर में और जीण ज्वर में उत्तम लाभ करता है। परन्तु सके विषय में इतना ही लिखा हे कि-- निहन्ति विविधान्‌ विषसज्रान विविध प्रकार के विषम ज्वरों को नष्ट करता हे । इसी प्रकार अझितुण्डी वबटी-श्रग्निमान्य श्रजीण गप्रहणी शूल अम्लपित्त में श्रेष्ठ औषध है परन्तु




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