कालिका पुराण द्वितीय खंड | Kalika Puran Vol-2

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Kalika Puran Vol-2 by चमनलाल गौतम - Chamanlal Gautam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ५) ऐसी ही परीक्षा अर्य (घन) और घमे (यज्ञ तथा कर्मकाण्ड) आदि के विषय से भी की जानी आवश्यक है और जो व्यक्ति कितों दृष्टि से राजा से प्रतियोगिता का भाव रखता हो अथवा उसको हटाकर स्वयं शासक बन बैठने की अमिलापा रखता हो उन सबको कटक स्वरूप समझ कर, दूर हटा देना ही बुद्धिमत्ता हैं। इम अच्याय के अन्त में यह भी प्रकट कर दिया गया है कि राजनीति की ये चार्ले बृहस्तति ओर शुक्र के राजनीति सम्बन्धी ग्रन्थों के आबार पर सपह की गई हैं। यद्यवि वर्तमान समय में एकतंत्र शासकों (राजाओ) का अन्त हो जाते से, ये बातें निर्थंक जाने पडती हैं, जिस समय राज्य की बागडोर केवल एक दो व्यक्तियों के हाथ मे ही रहती थी और अन्य लोग उनको मारकर स्वय उस पद +' प्रहण करने के लिये सदेव पडयत्र रचते रहते थे उम्र समय निस्सन्देह इध्त प्रकार की जानकारी बडी महत्वपूर्ण थी । 2५ 4 र् यद्यपि यह एक पौराणिक रचना है, जिसमे कालिका (महाजश्क्ति) की पूजा, उपासना, जप, ध्यात आदि का ही विशेष वर्णन किया गधा हैं ओर देवी की विभिन्न शक्तियो-दुर्गा, चण्डी, तारा, बौमारी, छिन्नमस्ता घृपावती आदि की विभिन्न साधना विधियों पर बिस्तार के साथ प्रकाश डाला गया है। हम जानते है कि आधुनिक विद्वावु इस अकार के पूजा-पाठ को निरर्थक्र और काल्पनिक बतलाते हैं और प्राचीन ज्ञान मार्ग वालों ने भी उसे बहुत नीचे दर्जे की उपासना माता है, क्योकि उनके मतानुप्तार सबसे उच्चक्रोटि की उपामना अपनी आत्मा की है । जब मनुष्य अपनी आत्मा को परमात्मा का अश मानकर उसका ही ध्यान करन लगता है तभी वह ब्रह्मश्ान का अधिकारी बनता है । पाठकों को यह देखकर कुछ बाश्चर्य होगा कि हृढ़ साम्प्रदायिक होते हुए भी कालिका-पुराण के रचयिता ने इस तथ्य को सर्वथा मुला नहों दिया हैं » उन्होने गन्ध, पृष्प, अक्षत, नैवेद्य अदि से देवी की प्रोडश।- चार पूजा! करने का विधान बतलाते हुए भी यह सकेत कर दिया है




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