कालिका पुराण भाग - 1 | Kalika Puran Bhag - 1

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Kalika Puran Bhag - 1  by चमनलाल गौतम - Chamanlal Gautam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दो शब्द भारत के घाधिक साहित्य में अठारह महापुराणों बे अतिरिक्त जिन उप पुराणों की गणना को जानी है, उन्हीं से से एक “वालिया पूराण” भी है । यद्यपि इसमें भी शिव पावंती के चरित्र और द्ेवी- माहात्म्य की थे दी घटनायें दी गई हैं, जो विभिन्‍न पुराणों में मिलती है, फिर भी इसमें कुछ अपनी विद्येपता है। इसका प्रारम्म कामदेव की उत्पत्ति से होता है, उसने सबसे पहले अपने निर्माता ब्रहाजी पर ही मदनास्त्र चलाया, जिससे उतकी बड़ी विडम्बना हुई। फ्लस्वरूप उन्होंने बूपित होकर उम्रे भम्म कर दिया । इस प्रकार शिवजों से भी पहले ग्रह्माजी द्वारा “मदन-दहन” अभी तक किमी ग्रन्य में हमारे देखने में नहीं आया । इसी प्रकार सती नी क्‍या और “दक्ष-यज्ञ” को भज्ञ करने का क्थानक भी बहुत भिन्‍नता युक्त है ।जैसा अन्य जिखा है कि सती ने दक्ष के यज्ञ में जारर वही के अश्नि कुण्ड में प्राण त्याग किया, चैसा “कालिका पुराण” में नहीं है। इसके अनुसार मती ने जब गह सुना कि क्पाली कहकर दक्ष से शिवजी को आमच्त्रित नहीं किया है, तभी क्रोप्रित होरर अपने निवास स्थान में प्राण त्याग दिये और यह देखकर शिवजी ने स्वय जाकर यज्ञ भड्ड किया। पाती के विवाह में सध्य ऋषियों का दुूतत्त्व, बरात, विवाह-विधि आदि का दुछ वर्णन नही है, वरव्‌ शिवजी स्वय उसकी परीक्षा लेने आये और सन्तुट होकर पाणि ग्रहण करके उसे साय ले गये 1 बाराह अवतार के चरित्र में उनके तीन पुत्रो त्था स्वयं उनका दइरभ रूपी शवर से युद्ध वा वर्णन बड़ा अदुमृत है। दो ईश्वरीय विभूतियाँ मित्र-माव रखते हुए जात-वृझकर ऐसा घोर सप्राम करें यह




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