एक बूँद सहसा उछली | Ek Bund Sahasa Uchhali

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : एक बूँद सहसा उछली  - Ek Bund Sahasa Uchhali

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सच्चिदानन्द वात्स्यायन - Sacchidanand Vatsyayan

Add Infomation AboutSacchidanand Vatsyayan

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
यूरोपकी भमराबती रोसा २१ पूछनेके लिए सही प्रश्ताकी सूची वना छेता--यह ओऔर भी बी उपरलध हूं। आजके युगमें, जव कुछ खोजने चलनस कुछ मानकर चलनका अधिक महत्व लिया जाता हू और जब यात्री प्राय बुछ देखने नहीं जो मानकर चले हू उसकी पप्टि पान निकलटत हू तन उसका सहाव और भी अधिक ह। यात्री अधिक पूजा न लेरर लोड ता फालतू असवाबस छुड्रा पाकर सहज यात्रा करना ही सीस आय यहा बहुत हू / म उन लोगाकी बात सही कहता जो महासे कई एक साली झोटे लकर चलत हू मौर छोटते समय जिनते कपर्डाने हर सछव्से कलाई घड़ियाकों रब्याँ जूताव भीतरस छ -छ जोड़े नाइतोनक मौजे या काटक जस्तरमैंसे गजा आारजेट निकला करती हू) न उहा छोगावी वात बहता हू जिनर लिए स्वर्गीव आनाठ जुभार स्वामीने बहुत दु सी हाकर कहा था कि भाप जब वित्टमें आये ता वहाँव छ्ागायों यह भी अनुभव वरनेका कारण दीजिए कि आप अपने साथ प्च करनना लिए पसाद' अछात्रा भो शुछ लेकर जाये हू | # इन दाना प्रवारत यात्रियाक! दुर हीस नमस्कार बरता हु। जितनी अधिक दूर व चर जाय उतना ही अधिक वित्त मेरा नमस्थार ! पालतु असवाबसे उूट्टे पाते हुए सहज भावसे यात्रा वरना सीखद चलता ही मेरा उद्देश्य रहा ह--विदेशाटनमें ही नहीं जीवन यात्रामें भी । इस प्रकार क्रमागंत वसरीसामान हो जानमें सयासवी नाटकी तीडता या आत्यन्तिकता नहीं हू ऐेक्नि इससे मिल्नवारे हत्केपतस सुव्तिका जो बोध होता ह वह बुछ बम मूल्यवान नहीं हू। ठेकिन अखिम उपलब्धिवी बात अभीसे नरना दारानिक्ताका पचडा ले बटठना जान पढ़ सकता हू इसहिए उस्ते छोड नापको चटके विमावप्र विटाकर धर करानेंव मेरे # भरते कुछ पुव अमराका झाये हुए भारतीम विद्यायियोको सम्बोधन करते समय स्थ० कुमार स्वामोने भारतीय सस्कारोंपर घर देते हुए यह बहा था। “+>लेखक




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now