अनाथ | Anath
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
168
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२५
इसके लिये मुरादकों संतुप्द करने और' मंधुर व्यवहारसे अपनी ओर
खीचनेकी जरूरत थी झी तएपए हज,
| उसादिन जब शामको मुराद भेडोकों लकर !लौटा तो बायने
मेहमानखानेमें अपने और 'साराके'बीच जो घटना उस दिन हुई थी उसे
उसी तरह दोहराया 1 था 75 | श
“मैं तेरी बीबीको अपनी बेटी अपनी बहु-जैसो समझता हूँ और
उसीके अनुसार व्यवहार क्रता हैं । आज उसे पैतृक स्मृतिके तौरपर
एक चाँदीकी अंगूठी देना चाहता था। नही जानता कि उसे वया सददेह
हैआ । उसने मुझे खरी-खोटी सुनाई और तेरी भाभियोके सामने मुझे
अपमानित किया कट
मुराद इस घटनाको सुनकर अपने विचारोंमे डूब गया। वायने
उसका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करते हुए फिर कहा--साराकी वातोको-
सुनकर कही तू मुझसे नाराज न हो जाय इसीलिये मैंने तुझसे सीधे
वातकी । उसको समझा दे कि वह फिर मेरी हवेलीमे न आये-जाये ।
मुरादको कही यंह ख्याल न हो जाय कि बाय उसे नौकरीसे छुडाः
देगा इसलिये बाय बहुत नमसे बोला--मेरी इस बातसे तू यह न
समझ कि मैं तुझसे या सासस नाराज हो गया। उसके आन-जातेके
लिये मना करनेका सेरा मतलब यही है कि कही औरतोके धीच वेकार
अहा-सुनी न हो जाये अन्यथा मैं उसके व्यवहारको बच्चेवी वात समझ-
कर दिलमे नहीं लाता । आगे भी तैरी जो कुछ भी भलाई कर सकता
हैं उसे उठा न रखूंगा । पहले जबतू एक शिर और एक शरीर दया,
उस वक्त तुझे क्या पैसा-कौडी चाहिये पूछकर मैंने तेरी ठौकसे सहा-
यता नही की लेकिन अवतू गृहस्थ है। एक दूसरे आदमीकी रोटी भी
तरे शिरपर है । में अब इसका ख्याल रखूंगा। ध्
दाय चुप हो गयो। मुरादने समझा कि बायकी वात समाप्त हो
गयी और बह अपनी जगहसे उठने लगी। बायने फिर मुँह खोला । मुराद
बेंटफर फिर सुनने लगा। | ज
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