अनाथ | Anath

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Anath by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२५ इसके लिये मुरादकों संतुप्द करने और' मंधुर व्यवहारसे अपनी ओर खीचनेकी जरूरत थी झी तएपए हज, | उसादिन जब शामको मुराद भेडोकों लकर !लौटा तो बायने मेहमानखानेमें अपने और 'साराके'बीच जो घटना उस दिन हुई थी उसे उसी तरह दोहराया 1 था 75 | श “मैं तेरी बीबीको अपनी बेटी अपनी बहु-जैसो समझता हूँ और उसीके अनुसार व्यवहार क्रता हैं । आज उसे पैतृक स्मृतिके तौरपर एक चाँदीकी अंगूठी देना चाहता था। नही जानता कि उसे वया सददेह हैआ । उसने मुझे खरी-खोटी सुनाई और तेरी भाभियोके सामने मुझे अपमानित किया कट मुराद इस घटनाको सुनकर अपने विचारोंमे डूब गया। वायने उसका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करते हुए फिर कहा--साराकी वातोको- सुनकर कही तू मुझसे नाराज न हो जाय इसीलिये मैंने तुझसे सीधे वातकी । उसको समझा दे कि वह फिर मेरी हवेलीमे न आये-जाये । मुरादको कही यंह ख्याल न हो जाय कि बाय उसे नौकरीसे छुडाः देगा इसलिये बाय बहुत नमसे बोला--मेरी इस बातसे तू यह न समझ कि मैं तुझसे या सासस नाराज हो गया। उसके आन-जातेके लिये मना करनेका सेरा मतलब यही है कि कही औरतोके धीच वेकार अहा-सुनी न हो जाये अन्यथा मैं उसके व्यवहारको बच्चेवी वात समझ- कर दिलमे नहीं लाता । आगे भी तैरी जो कुछ भी भलाई कर सकता हैं उसे उठा न रखूंगा । पहले जबतू एक शिर और एक शरीर दया, उस वक्‍त तुझे क्या पैसा-कौडी चाहिये पूछकर मैंने तेरी ठौकसे सहा- यता नही की लेकिन अवतू गृहस्थ है। एक दूसरे आदमीकी रोटी भी तरे शिरपर है । में अब इसका ख्याल रखूंगा। ध् दाय चुप हो गयो। मुरादने समझा कि बायकी वात समाप्त हो गयी और बह अपनी जगहसे उठने लगी। बायने फिर मुँह खोला । मुराद बेंटफर फिर सुनने लगा। | ज




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