छाया मत छूना मन | Chaya Mat Chhuna Man
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
126
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)- एक दिन माँ रसोईघर में दाय दना रही थी। पड़ोस के ठेकेदार
रणधीर चाचा अन्दर चारपाई पर बैठे थे । उन्होने सामने खड़ी वस्सो--
बसुधा को जबरदस्ती खीचकर अपनी गोद में विठछ्ा लिया और फिर उसे
भीचकर चूमने लगे तो माँ बिगड़ पड़ी 1
चाय की केतली हाथ से छूटकर नीचे गिर गयी ।
'तैनूँ शर्म नई आंदी....।'
रणधीर चाचा पहले सकपकाये-खिसियाये, फिर कुछ एककर व्यंग्य-
बाण छोड़ते हुए बोले “शरम तो तुम्हें आनी चाहिए थी परवीन ! अपना
चरित्तर देखो ! फिर देना दूसरों को दोप....”*
इतना कहकर यह चले गये 1
माँ सुन्न रह गयी !
उसी समय उसने खिड़कियाँ बन्द कर दो । दरवाज़े बन्द कर दिये....।
बहू दिन था कि यह दिन !
अब घर में कोई भी आता न था। जिसे काम होता बहू जिड़की
से ही बातें करके चला जाता 1
इसके कुछ ही दिनों बाद माँ ने हमेशा के लिए लुधियाना छोड़ दिया।
दोनों बच्चियों को छेकर दिल्ली आ गयी और यहाँ दूसरा विवाह रचा
लिया 1
छा
पर यह दूसरा विवाह भी रास न आ पाया ।
दूसरे पिता इतने भोछे थे कि दौन-दुनिया को इन्हें कुछ भी खबर
मृथी।
माँ को एक सहारा चाहिए था, संसार को निगाहों से बचने के लिए ।
लेकिन भह सहारा भी मृगतृष्णा-सा छग रहा था।
यहाँ आकर पिछली सारी जिन्दगी को उसने भुला दिया था। घर
तक़ हो सीमित संसार था अब उसका और पति था--परमेश्वर !
ते छना मन बछ
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