जीवनोपयोगी प्रवचन | Jeevan Upayogi Pravchan

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Jeevan Upayogi Pravchan by स्वामी रामसुखदास - Swami Ramsukhdas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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। । श्रीहरि:। । सत्संगकी महिमा प्रथम भगति संतन्‍्ह कर संगा। (मानस ३/३४/४) सत महात्माओका संग पहली भक्ति है। भक्ति सुतंत्र सकल सुख खानी। जिन सतसंग न पावहि प्रानी।! (मानस ७/४४/३) भक्ति स्वतनत्र है, सम्पूर्ण सुखोंकी खान है। कहते है: - सतसंगत मुद मंगल मूला। सोड फल सिधि सब साधन फला। (मानस १/२/४) सम्पूर्ण मंगलकी मल सत्संगति है। वक्षमें पहिले मल होता है, और अन्तिम लक्ष्य फल होता है। सत्संगनिमल भी है, और फल भी है। जितने अन्य साधन हैं सब फल पत्ती हैं जो मूल और फलके बीचमें रहनेवाली चीजें हैं। सत्संगतिमें ही सब साधन आ जाते हैं। इसलिये सत्संगकी बड़ी भारी महिमा है।




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