भारतीय शिखर कथा कोश पंजाबी कहानियाँ | Bharatiy Shikhar Katha Kosh Panjabi Kahaniyan

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Bharatiy Shikhar Katha Kosh Panjabi Kahaniyan  by कमलेश्वर - Kamaleshvar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ना मारो र्‌श रखकर मैंने उसके माये पर हाथ रखा। उसको हर साँस म एक हल्की-सी कराह शामिल थी। मैंने उसकी टाँग को देखा । पट्टियो के ऊपर काला खून रिस-रिसक्र जम गया था, और टाग अब बहुत सूज चुकी थी । एक अजीब बेवसी मे मैं कमरे से वाहर जा गई। ताला फिर लगा दिया। मुझसे खाता नही खाया भया। आधी रात को उठकर मैं कोठरी म गई। वत्ती जलाई। वह अपनी टाग पर झुका हुआ था। उसकी बराह लम्बी हो गई था । मैंने उसे हाथ लगाया। वह उठा नही। रोटी उसी तरह थाली मे पडी थी, और दाल पर घी वी सफेद तह जम गई थी। पानी का गिलास लाकर मैंने उसका सिर उठाया और ग्रिलास उसके होठा से लगा दिया । पता नही वह जाग रहा था कि सो रहा था, होश में था या बेहोश, दो घूठ पानी उसमे पी लिया, और फिर अपनी दाग पर झुक गया। वह गठरी की तरह वहाँ पडा था--पुरानी पंटिया बे पीछे। ओर बाहर खतरा उसका सुराग खोज रहा था । अगले दिन वह उसी तरह बुखार म तपता हुआ पडा रहा | सध्या के समय मैंने जबरदस्ती उसे गरम दूध के दो घूट पिलाए। एक वार उसने आर्खें खाली । धीरे से कहा, “मै यहां नही मरूँगा । आपको मरी लाश बाहर निकालने म॑ बहुत मुश्किल होगी, बहन !” टूट-फूट शब्दा म वह बोल रहा था । मैं वापस कमरे म थाई तो किसी ने बाहर वे दरवाजे की कुडी खटखटाई। +इस वक्‍त कौन आ गया है ?' --मेरी मा कुछ खीझकर बोली । मैंने बाहर जाकर दरवाजा खोला ता वही दोना सिपाही खडे थे । कहन लगे, “यो तो आपके धर की तलाशी लेने वी कोई जरूरत नही पर हमारे कुत्ते वहा बाहर गिरे हुए खून की सूध+र बार-बार यही आ जाते हू। जरा भीतर से देखन दो | * मैं बहुत धवरा गई। कहा, माँ रात-मर सोइ नहीं। अभी खाना खाकर आख लगी है। आप घदे भर तक ! “कोई वात नही । सोने दी मा जी को । हम घटे तक भा जायेंगे। पर रात को? “नही, रात की कोई बात नही । ' और मैने उह भज दिया । “कौन था २ मा ने पूछा 1 “सिपाही थे। कह रहे थे तलाशी लेनी है। कोई भागकर इस गली म॑ आ छुपा है।' “कुडी अच्छी तरह से लगा ली है? '--मा न॑ पूछा और चारपाई पर लेट गई ।




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