धरती माता | Dharati Mata

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Book Image : धरती माता  - Dharati Mata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घरठी मादा श्र ग्घ रात जब तक सेइमान गपशप काठे हुपू चाय धोते रहे, हथ तक घर की स्त्री अपमै काम में दी क्षणी रही । मेहमाओजों के विद्या होते ही पैकों के पास पद्ने हप चोरे में बह बुढक कर छेट पाई | बांग्ु ग मै करण डस छगात्रा तो शसकौ झांखें सोश्तापत छिये हुए सुझ्खीं। पति इसे झ्रपपे हाथो छे डडाकर अपपे कमरे में छे पथ! झौर मोमबत्तो जला कर जैसे ही उसमे पेज पर रस्‍कौ कि उप्त रोशनी से झपने को रटो के साममै अडै क्षा पाकर कुछ शर्मा-सा घया । और बइ कपडे उतारकर बिस्ठरे में छेरपे को हैयारी करने झगा। डबथ पर्द के पोपे उसकी ऊ्री सी धोगे छो तेपारी में छझयो। धांगूह ए क बहा-- 'दिस्तरे में कषेर मे से पह्िस्े पत्ती धुझा देव |? इत्तमा कइ कर घइ दिस्तर पर छ्लेट गबा और रशआई भोद कर सोबे का बहाना करने क्षणा | क्षेक्रिस भींद्‌ कहों थी । दप्तही रगरण तो जल यृत भषस्पा में हो पी घोर थोड़ी ही देर में क्‍सश्पेरा हो गवा तो डपे अपने पप्स प्रो की करबर माशूम पढ़ी झौर बह पुर विशेष प्रकार की सावन से इत्त हित दवा डस्स, बढ सादसमा डसक शरीर को ठोगने के दिप काफ़ी थी । भंधेरे सें प्रसन्न दित्त दो डसने झपषी प्रो को छाहुपाश सें जफर किया |




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