सूर्य के स्तोत्रों का आलोचनात्मक अध्ययन | Surya Ke Stroto Ka Alochanatmak Adhayan

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Surya Ke Stroto Ka Alochanatmak Adhayan by हरिशंकर त्रिपाठी - Harishankar Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उचराध्ययन मैं स्तोत्रों की महत्ता हस प्रकार है -- स्तव स्तुति मंगठपाठ से बीवज्ञान दर्शन जौर चरिक्रप बीचिलाम को प्राप्त करता है । अन्तर ज्ञान दर्शन और चरिक्रप बोचि- छाम की प्राप्त करें वाठा बीव अस्तय किया व कल्पविमानीपर्पाघ् कौ प्राप्त करता है | स्तोत्र प्रयोजन - सता लत लटका पका एकल तहत लाकर सका पडा मकर बलि शुद्धात्माजों की उपासना था सक्ति का अवलम्बन पाकर मानव का चंचठ चिच दाण मर के छिर स्थिर हो नाता है । यह आठम्बन के गुर्णों का स्मरण कर अपने अन्त करण में उन्हीं गुण्यों को विकसित करने की प्रेरणा पाता है तथा उनकैं मुर्गा से कूप्राित ही मिधया परिणति कौ दुर करने के पुरुषार्थ में गत हो नाता हैं क्यों कि दर्शन में शुद्धात्मा का नाम परमात्मा है । प्रत्थक नीवात्मा कर्पबन्घनों के विंग हों लाने पर परमात्मा बन जाता हैं । जक्ति स्तोत्रीं में मकत के समी मार्वों का पर्यवसान अम्तत बड्ति मैं ही हौता हैं अतरव हनमें घार्मिक स्व दाशनिक दोसा प्रकार की मावनार देखने कौ सिछती है । बाचार्ये समन्तमढ़ ने स्तीत्रो का प्रयोगन इस प्रकार वा्लित किया है -- तथापि ते मुनीन्द्रस्य यती नामापि की तितिमू । पुनाति पुण्य कीर्तनेंस्ततोी कुयाम किबन ।। श्रथत्‌ स्तौज पाठ काने से पिन में निर्मड़ता उत्पन्न होती है जिससे पुण्य सनक (मल फल बवग पलक लि (मलिक महवीय- पक विधिक नकर ब्धिक गा भंकिवेकः पं (वाककि चेलेंगो मन नपीकिका सलिका गलिकनिविक १ उत्तराध्ययन खमेबी प्रस्तावना टिप्यण्णी सच्ति बा बार्षेटियर उपबाढा १६१४ हँ 9 र६ अध्याय रह सुत्र । र- क्वबस्सु वीर७ लवि० स9 २9७४ रस रे सुष्ठ ईद |




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