जिनांगमकथासंग्रह | 1802 Jinagamkathasangrha;
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
264
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[१३ ]
(३२) रकारान्त स्लीलिंग शब्दोंके अत्य 'र! कोराहोता है ।
उदा० गिर्-गिरा
(१८) सयुक्त व्यजनम पहेंे आये हुए कु, गु, दू, डू, त्
दूं, प, थे, छु, जिह॒वामूलीय (%) ओर उपष्मानीयका (2 )
प्राइतमें लोप हो जाता है ओर बचा हुआ व्यजन यदि शब्दके
आदिमिं न हो तो उसकी द्विरक्ति हो जाती है। और वादे
नियम ८ के अनुसार उसमे परिवतन होता है ।
उदा० भुक्त-भुत्त, दुग्ध-दुद्ध, पटपद-छप्पम, तिश्वक-विश्वल,
हु४-तुद्र, निध्ृह-त्रिषपह, स्तव-तव 1
(१९) संयुक्त व्यजनमें पीछे आये हुए मूं, न, और यू
का लोप हो जाता है। आर शेप बचा हुआ व्यंजन यदि
शब्दकी आदिमें न हो तो द्विदक्तिको पाता है । उदा० य्रुग्म-
शुग्ग, । नग्न-नग्ग, इयामा-सामा |
(०) संयुक्त अक्षरमें पहेंले या पीछे रहे हुए छू, व्, बु,
ओर र् का लोप हो जाता है। ओर शेप वचा हुआ व्यंजन
५
User Reviews
No Reviews | Add Yours...