न्याय दीपिका | Nyaye- Deepika

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Nyaye- Deepika by आचार्य जुगल किशोर जैन 'मुख़्तार' - Acharya Jugal Kishor Jain 'Mukhtar'

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जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।

पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रकाशकोय वक्‍ृतव्य (प्रथम सस्करण ) ग्राजसे कोई ४६ वर्ष पहले सन्‌ १८६६ में 'न्यायदीपिका का मुल- रूपमे प्रथम प्रकाशन प० कल्‍्लाप्पा भरमाप्पा निटवे (कोल्हापुर )के द्वारा हुआ था | उसी वक्‍त इस सुन्दर ग्रथका मुझे प्रथम-परिचय मिला था भरौर इसके सहारे ही मैंने न्यायश्ञास्त्रमे प्रवेश किया था। इसके बाद 'परीक्षामुस' श्रादि बीसियो न्यायग्रथोको पढने-देसनेका अवसर मिला भ्रौर वे वडे ही महत्वके भी मालूम हुए, परन्तु सरलता श्रौर सहजवीधघ गम्यताकी दृष्टिसे हृदयमे 'स्यायदीपिका' को प्रथम स्थान प्राप्त रहा श्रौर यह जान पडः कि न्‍्यायशास्त्रका अ्रम्यास प्रारम्भ करनेवाले जैनोंके लिये यह प्रयम-पठनीय और श्रच्छे कामकी चीज है। और इसलिये ग्रथकारमहोदयने ग्रथकी आदिमे “वाल-प्रवुद्धये” पदके द्वारा श्रथका जो लक्ष्य 'वालकोकों न्‍्याय- शास्त्रमे प्रवीण करना” व्यक्त किया है वह यथार्थ है और उसे पूरा करनेमे वे सफल हुए हैं । न्याय वास्तवमे एक विद्या है, विज्ञान है --साइस है--श्रववा यो कहिये कि एक कसौटी है जिससे वस्तु-तत्त्को जाना जाता है, परखा जाता है श्रोर खरे-खोटेके मिश्रण को पहचाना जाता है। विद्या यदि दूषित होजाय, विज्ञानमे भ्रम छा जाय और कसौटी पर मेल चढ जाय तो जिस प्रकार ये चीजें अपता ठीक काम नही दे सकती उसी प्रकार न्याय भी दूषित भ्रम-पूर्ण तथा मलिन होने पर वस्तुतत्त्वके यथार्थनिर्णय में सहायक नही हो सकता | श्रीअकलडूदेवसे पहले अ्रन्धका र(भ्ज्ञान) के माहात्म्य और कलियुगके प्रतापसे कुछ ऐसे ताकिक विद्वानों द्वारा जो प्राय गुण-द्वेषी थे, न्‍्यायशास्त्र बहुत कुछ मलिन किया जा चुका था, भ्रक- लड्जदेवने सम्यगू-ज्ञानरूप-वचन जलोसे (न्‍्यायविनिश्चयादि ग्रन्थों द्वारा) जैसे त॑ंसे धो-धाकर उसे निर्मल किया था, जैसाकि न्यायविनिर्चय के निम्न वाक्यसे प्रकट है---




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