चन्द राजा | Chand Raja

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Chand Raja by पं. काशीनाथ जैन - Pt. Kashinath Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(| ३ -.. .- -चन्द राजा शहरमें उत्सव . मनाया गया । आबाल, वृद्ध, -वनिता, सभी इस व्याहसे आनन्दित हुए | केवल वीरमती ही एक. ऐसी थी, जिसे-इस व्याहसे दःख हुआ | सब. काम - निपट जाने- पर राजा: पत्मशेखर अपने नगरकों वापस चला गया | इधर राजा वीरसेन और चन्द्रावर्तके दिन चनसे कटने लने | दोनोंका प्रेम उत्तरोत्तर बढ़ता ही जाता 'था। इससे बीसमतीके हृदयमें सोतिया डाहके कारण भगकुर ईपॉरिन धधक- उद्ी। चन्द्रावतीका स्वभाव चहुत ही सरल था, इसलिये वह तो. वीरमतीको बहनके समान ही मानती थी । पतिके आरास पर भी बह पूरा - ध्यान रखती थी। इस तरह उसका जीवन बहुत ही सरल और आओनन्‍्दपूवक बीत रहा था, परन्तु वीरमतीकी अवस्था इससे बिलकुल, विपरीत थी.। बह, चन्द्राचती और अपने पति दोनों पर मन-ही-मन कुढ़ा करती थी । ऐसे ही समय में चन्द्रावतीके गर्भमें किसी पुण्यवन्त जीवका. आगमन हुआ । उसी रातको उसने चन्द्र-दशंन- का स्पेप्त देखा । यह स्व्॒म्म बहुतही शुभ-सचक था, इसलिये राजाको मालठ्म होनेपर वह बड़ा ही प्रसन्ष हुआ | गर्भ-काल पूर्ण होनेपर यथा - समय चन्द्रावतीने , एक पृत्र-स्त्नकी जन्म दिया। इससे समयचे सगरमें




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