नल दमयन्ती | Nal Damyanti

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Nal Damyanti by पं. काशीनाथ जैन - Pt. Kashinath Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ पहला परिच्छेद ब्स्स्दुसूस्स्ा बड्टे आदरके साथ अलग-अलग स्थानोमें ठदराया। देश- देशके भिन्र-भिन्न रूप-रड् वाले सनुष्यो'के आगमनसे कुस्छिन- पुरभें खासो चचह्ल-पहल हो गयो। जगह-जगह खेल-तमाणे और नाच गानका रद जम गया । भिम्र-भिन्न राजाओके रंग बिरंगे डरे-खोमे गड गये--उन पर रंग-विरंगी “ पवाकाएँ फरराने लगीं। कुसिडिनपुरके भुण्ड-के-क्ुण्ड लोग आकर उन छेरे-तम्वुश्रोंकी देखने लगे। सबको अपेचा निषध देश- के प्री राजाका सन्दर डेरा लोगो'को बहुत हो पसन्द आया । उस डेरेके भोतर फाँक कर लोगो'ने जब राजकुमार 'नंलको देखा, तब तो उनको सुन्दरताने सबको आंँखो'में चकार्चीधसो लगा दो। सब लोग उस कामदेवके समान सुन्दर रुपवाले नलको देखकर कहने लगे,--“बस यही राजकुमार दमयन्तीके योग्य वर है। भक्ष्छा हो, यदि राजा भीसरथ, सबको छोड कर इसोके साथ दमयन्तोका विवाह कर दें। 1! नियत समय पर सब लोग खय॑वर-सण्डपमें आरा विराजे | सभी राजा-राजकुमार्‌ बडे ठा८-बाट्से भडकोली पोशाके पहने चेढे 'इए थे। कोसल-नरेश भी अपने दोनो' घुत्रो'के साथ सणि-रल्न-जटित सिह्दासन पर बेठे हुए नचत्रो'के बोच शोभित फोनेवाले चन्द्रमाकी भाँति शोभा पा रहे थे। सबके बोचमें गजकुसार नल सहस्वरश्मि सके समान सबकी च्योतिको मन्द करते हुए विराजसान थे || उनका तेज देखकर - सबकी आँखें किप जाती थीं । न मालूम क्यों, सबके दिलमें रह-रह




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