लिङ्ग पुराण खण्ड 2 | Linga Purana Khand 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
512
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जन्म:-
20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)
मृत्यु :-
2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत
अन्य नाम :-
श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी
आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |
गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत
पत्नी :- भगवती देवी शर्मा
श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(४५ )
की विद्या और श्रविद्या रूप वाला कहते हैं। “विद्या! शब्द का धाशय
समत्द लोको के घाता-विधाता तथा श्रादि देव महेश्वर से ही है। कुछ
मुनिगण उस्ते योग द्वारा ग्रहण किया करते हैं और क्छ आागमो के
भ्राधार पर उसका ज्ञान प्राप्त करते हैं। जो झ्रात्माकार स सं त्ति होती
है उसे बुधजनो द्वारा “विद्या के नाम से पुकारा जाता है झ्ौर जो विकल्प
से सवंधा रहित तत्त्व होता है उसे परम शब्द द्वारा वथित किया जाता
है । इन दो के भ्रतिरिक्त उस ईथ का तीसरा रूप कुछ भी नहीं होता ।
सम्पर्ण लोको का विधाता ( रचबिता ) भौर घाता पोषक ) एवं
परमेश्वर तथा तेईस तत्वों का समुदाय, ये सब कुछ शिव के लिये ही
कहा गया है। इन तोनो का समुदाय ही शद्भूर का स्वरूप होता है
“प्रशाकर' अर्थात् शद्धुर से भिन्न तो कुछ है ही नही ।”
इस प्रकार 'लिज्ञ पुराण' में जो कुछ कहा गया है वह चाहे धन्य
विचार वालो को 'शैव-सम्प्रदायः का मत ही जान पड़े, पर तत्तत वह
समस्त विद्वानों द्वारा स्वीकृत ब्रह्म वी एकता का सिद्धा त ही है । यह
बात बुछ ग्रागे चल कर ब्रह्मा, विध्णु चादि देवताड्रो द्वारा वी गई भग-
बान् शिव की स्तुति मे और भी स्पष्टता से वशित की गई है--
ब्रह्मादि देवो ने कहा--जो यह भगवान सरद्र हैं बरी ब्रह्म त्रिघगु
तथा महँश्वर हैं, श्लोर वही स्वन्द, इन्द्र भोर चोदह भुवन है। ग्रख्िनी-
बुमार ग्रह, तारा, नक्षत, भ्र तरिक्ष दिशाएँ पचभूत सूय, मोम भठ-
ग्रह, श्राएं, काल, यम, मृत्यु अमृत, परमेश्वर, भूत, भव्य और वर्तमान
श्रादि सम्पूणा विश्व एवं समस्त जगत भगवान् शिव वा ही स्वरूप है ।
उप्त सत्य रूप के लिये हमारा राब बा नमस्कार शौर प्रणाम है ॥ हे ग्ह-
ख़र देव । श्राप ही भादि हैं तथा भूभुंच स्व भी ध्राप हो हैं। प्राप
पस्त मे विश्व्प हैं और सव्वंदा इस जगत वे दझीप॑ हैं। आप झद्वितीय
ब्रह्म हैं जिमके कि प्रड्डति और पुरुष तथा ब्रह्मा विष्णु महेश शादि
विभिन्न रूप हतते हैं। भर्धात् ये समस्त रूप उमो प्रद्वितीय णत्र शक्ति वें
हैं । है सुरेश्वर ! आप ही सब के भ्राधार द्ातव, पुष्टि, नु हुव् अटृुत,
विश्व भविश्व, दत्त अदत्त हो | भाप बत-प्रकृत, पर भ्रपर, ध्रुव, सत्युदपो
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