अष्टाध्यायी - भाष्य प्रथमावृत्ति भाग - 1 | Ashtadhyayi Bhashya Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
75 MB
कुल पष्ठ :
602
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पाद: | चतुर्थोध्याय: डे
इन्द्र: । अबु--आतिपदिकान , स्त्रियाम्, प्रत्यय:, परश्च | अशथे---
अजादिभ्य: गआतिपदिकेभ्यो5कारान्तेम्यश्वच स्त्रियां टापू प्रत्ययो
भवति | उद्या०--अजा एडका कोकिछा। अदन्तेभ्यः--देवदत्ता
कृष्णा |]
भाषा4थ:--[ अजाधत:] अजादि गण पठित आतिपदिकों से तथा
अद्न्त प्रातिपदिकों से स्त्रीलिज्ञ में [टाप्] टाप् प्रत्यय होता है।
उदा“--अजा (बकरी), एडका (भेड़), कोकित (कोयल), देवदत्ता
(देवदत्ता नाम की स्त्री), ऋष्णा , कृष्णा नामक स्त्री) ॥ पूर्वबत् खट्वा के
समान (७)१॥२) सिद्धि जाने । अज टाप् 5 अजा |
यहाँ से 'अतः” की अलुवृत्ति सम्पूर्ण स्त्री प्रकरण में जायेगी, जो कि
सामर्थ्य से ही आगे के सूत्रों में बेठेगी। जहाँ हलन्त प्रातिपदिकों से
सत्री-प्रत्यय का विधान किया होगा, ऐसे स्थछों में असामर्थ्य॑ होने से
अतः का संबन्ध न होगा ।
ऋन्नेभ्यों डीप ॥४।१।५॥
ऋन्नेभ्यः ९।३॥ डीपू *१॥ स०- ऋच्च न्य ऋन्ना:, तेभ्य: -
ऋग्नेभ्यः, इतरेतरद्न्द्र: । अबु०--ख्तियाम् , प्रातिपदिकात् , प्रत्यय:,
परश्चथ ।। अ्र्थ:-- ऋकारास्तेभ्यो नकारान्तेभ्यश्व प्रतिपदिकेश्य:
ख्लरियां झीपू प्रत्ययो भवति ॥ उद्:--ऋकारास्तेम्य' “करत्री, ह्रीं ।
नकारान्तेभ्य:--दण्डिनी, छत्रिणी ॥
भाषाथे-न ऋननेभ्य:] ऋकारान्त तथा नकारान्त ग्रातिपदिकों से
सख्ीलिड्ज में [बप | छीप् प्रत्यय होता है ॥
यहाँ से 'छी११ की अनुवृत्ति ७१४२४ तक जायेगी ||
उगितश्च ॥४।१।६॥
उगितः ४॥१॥ च अ० ॥ स्ृ०--उक् (अत्याह्ार) इत् यस्य सोडय-
मुगित् तस्मात् *“* “ * बहुब्रीहिः ॥ अनु०--सख््रियाम् , डीप् , प्रातिपदि-
कात् , प्रत्ययः, परश्च । अर्थः--उगिद्न्तात् प्रातिपदिकात स्त्रियां डीपू
प्रत्ययो भवति॥ उदा “--भवती, अतिभवती, पचन्ती, यजन्ती ॥
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