श्री हर्षचरितम | Shri Harshcharitam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
949
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रद्रम उच्छास १ (्श]
नास् उचित चेयसौक्य ता गति सन्यमान तृष्णोम् अवाज्जुणठ
तस्थी। यशोवतों च सत्यक्नसतल्लेह्ा चरणाभ्यामेव वे अन्त *
पुरात निगल अनुसरखतीतठ चिताईग्निस् आरुरोड |
इवस्तु सातुर्मरणेन नितरा विद्वल पुन पितु अग्तिकस्
आगच्छन् तत्च खत्पावशेषजोवितम अच्ुस्तोतसा वर्षन् विस्तत्ञ-
करठसतिचिर प्रागोदीत1 राजा तु चिरात् चत्तुरुक्ौत्य पृतर॑
तथाविध हृष्टा प्रचीणखरेण कथच्ित उवाच,--वरत्स! कंथमेच
विज्नवीभवन्तम् आत्मान न रुणत्ति त्वाहशा हि न
अमहासत्त्ता, न अल्यम्रतयथ , के त्द्दिघा ? का च वैज्नव्यम् ?
भूरियं तव इति सा््वभोस्तलत्षणवत पुनरुक्षताम् एति। अब
शब्बता लक्मों, इति लक्ष्या स्रय ग्यह्चोतपाण न युज्यते।
निण्छाता चापलम, इति ख़मावधोरस्य निरथंकोपदेश ” इत्येब
खुबन् एवं पहलस् अगात् राजसिह |
अन्नान्तरे अस्त्सयासोल वासरमणि । प्रकाशमार्ी च प्राथा
दिग्मि तारापती, खबमेंव समर्पित्स्कन्य सामन्ते पोरजनैथ
पुरोध पुर सरे खहीत्वा शवशिविकास् उपलरखतीतट, चिताया
नरनायार्छया वक्िसत्कारण कोर्तिमाताबशेधता नित्य यशोधन
ओशोनर द्रव राजेन्द्र । अथ उदिते च सबितरि देवो हप
साला पिल्ते भदददुदकाप्जलिस। अपस्तातयादईमस्तक पव
पिधाय उद्दभनीय दुकूलवसने पादचारणेव चितितलनिष्ितनयन
उष्णु निश्भसन् प्रत्याजगास भवनस।
एव देवो हरप॑ मम्रमेब पिल्स्या विश्ेन नितान्तविष्ठल,
(किद्त्ताविूदोएणि. आाध्गतहूदय समचिन्तवत्,--अपि
नाम आग्य ईहश पिछसरण सहाप्रनयसमस आकपण्य गतप्रैय्यों
वाष्पारिक्रत्ानी वनम्राययेत् * उत राज्यपद परिटयनेत्
न झ्माद्विवेत वा राजनच्मोसुपसपंन्तीम् १ अतीव पिड्यव्यल,
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