हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति | Hindustani Sangeet Paddhati
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
554
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( २२ )
यह क्रमिक परिवर्तन ध्यान रखने योग्य हे। साधारण गांधार ओर
कैशिक निषाद को रामामात्य ने 'पटश्रुतिक रे और “बट श्रुतिक घ!
कहा है । रामामात्य के शुद्ध रे और घ स्वर, अपने कोमल रे, थ हुए
ओर उसके शुद्ध ग और नि स्वर॒ अपने कोमल ग नि हो जाते हैं तथा
उसके अन्तर गांधार और काकली निषाद अपने शुद्ध ग और नो स्वर
होते हैं। रामामात्य के ग्रंथ में दिए हुए शुद्ध, विकृत स्वर आज दक्षिण
में उन्हीं नामों से प्रचलित है ।
राग वियोध
से
राग-विबोध-कता पण्डित सोमनाथ ने शाह्भ देव की वीणा पर
बाईस तार बांधने की पद्धति में परिवर्तन कर वीणा के डण्डे पर बाईस
परदे बांधने की युक्ति निकाली | इसने बीणा पर चार तार बांधकर
प्रथम तीन तार षड़ज को तीन श्रुतियों में मिलाना, और चौथा तार
शुद्ध अथवा अच्युत पड़ज का रखने का उल्लेखै किया है। प्रथम तीन
तारों को 'मनाक् उच्च ध्वनि! के प्रमाण से एक से दूसरा ऊँचा तार
लगाकर, चतुर्थ तार को षड़ज माना है । सोमनाथ ने रत्नाकर के विकृृत
स्वरों के नादों को बढ़ाऋर विक्रृत स्वरों के पन्द्रह नाम दिये हैं। उनका
स्थान अगले चार्ट में देखा जाये |
'सद्भीतसमयसार ओर “मद्रागचन्द्रोदय'
समयसार' ग्रंथ की रचना पं० पाश्वंदेव ने की है। इसने अपने
ग्रंथ में रलाकर का विवान ही उद्वृत कर लिया हे। श्रुति और स्वर
भेद, मतद्भ आदि के बताये हुए उद्धृत किए हैं। 'सद्रागचन्द्रोदय'
रचयिता 'पुण्डरीक विद्वल' ने सभी प्राचीन कल्पनाओं को अपने ग्रन्थ
में स्थान दिया हे, परन्तु यह किस प्रत्यक्ष स्वर ध्वनि का ग्रयोग करता था,
यह इसकी वीणा से समझा जा सकता हे । इसकी वीणा के तार रामा-
मास्य की वीणा के तारों के समान मिलाये जाते थे। इसने स्वर-स्थानों
का वर्णन निम्नरूप से किया हेः--
आद्याजुमंद्रावदय पड्जतंत्रया । शुद्धो यथा स्पाइपमस्तथाया ॥
सारी निवेश्येत तथा द्वितीया । तंत्रया तया शुद्धगसिद्धि द्ेतोः ।!
User Reviews
No Reviews | Add Yours...